Friday, October 30, 2009

सफलता के आठ सूत्र

दूसरों से प्रेम करने की शुरुआत पहले अपने से ही प्रेम करने से होती है। अपने से प्रेम करना हमेशा आत्ममुग्धता नहीं होता। यहाँ अपने से प्रेम करने का मतलब है, अपनी सभी खूबियों और कमियों के साथ अपने को अनकंडीशनली स्वीकार करना। इसे सेल्फ इम्प्रूविंग भी कहा जाता है। इसका मतलब यह भी है कि इससे हम अपने को बेहतर ढंग से जान पाते हैं। इसलिए अपने को एप्रीशिएट करना आना चाहिए। इसका मतलब अपनी क्षमताओं और योग्यताओं में विश्वास करना। स्टूडेंट्स अपने को इम्प्रूव करने के लिए इन आठ सीढ़ियों का इस्तेमाल करेंगे तो ज्यादा बेहतर बनेंगे।
1। रचनात्मक आलोचना करें : हर कोई अपना कटु आलोचक हो सकता है, लेकिन इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि हर स्टूडेंट्स को अपनी कंस्ट्रक्टिव आलोचना करना सीखना चाहिए। आप ऐसा संभव कर सकें तो बेहतर परिणाम हासिल कर सकते हैं। इसलिए अपने दिमाग में आ रहे नकारात्मक भावों को खत्म करें और रचनात्मक आलोचना करें।
2। माफ करें :कई बार होता है कि स्टूडेंट्स अपनी पास्ट लाइफ में की गई गलतियों को नहीं भूलते और अपने को इसके लिए कभी माफ नहीं करते। यही कारण है कि वे किसी ट्रामा या ट्रेजेडी से कभी पूरी तरह उभर नहीं पाते। इसलिए जिस तरह हम दूसरों की गलतियों को सहजता से भूल जाते हैं, उन्हें माफ कर देते हैं, ठीक इसी तरह अपनी गलतियों के लिए अपने को भी माफ करना चाहिए।
3। ईमानदारी : सच का सामना ईमानदारी से करें यानी अपने से कभी झूठ न बोलें। यदि आप अपने प्रति ईमानदार रहेंगे तो ही दूसरों के प्रति ईमानदार हो सकेंगे। यह बात करियर से लेकर फ्रैंडशिप तक में काम आती है। ऑनेस्टी इज द बेस्ट पॉलिसी।
4। अपने में विश्वास : यह बात कभी नहीं भूलना चाहिए कि हम सभी में कुछ खास है। हर स्टूडेंट्स में कुछ न कुछ खासियत होती है। इसलिए अपनी किसी भी क्षमता, कुशलता और योग्यता या किसी भी तरह की खासियत में विश्वास रखिए।
5। यारा सिली सिली : याद ऱखिए कि जब आप बच्चे थे तो इस बात कि कभी चिंता नहीं करते थे कि आपके बारे में कौन, क्या सोचता है। इसलिए इस दुनिया का सामना एक बच्चे की तरह करें और बच्चे की तरह ही रिएक्ट करें। कभी बबल्स बनाएँ, कभी कोई सिली सॉन्ग गुनगुनाएँ और कभी बच्चों की तरह फनी फेस बनाकर इस जिंदगी का मजा लें। गंभीरता कई बार जिंदगी का मजा किरकिरा कर देती है। एन्जॉय द लाइफ विद स्माइल।
6। ग्रेटिट्यूड एक्सप्रेस करें : हम हमेशा प्रार्थना करते हुए ईश्वर को धन्यवाद देते हैं कि हमारी जिंदगी में सब कुछ अच्छा हो रहा है या कि हम स्वस्थ हैं, खुश हैं। इसलिए दूसरों को किसी अच्छे काम के लिए धन्यवाद दें, उनके प्रति ग्रेटिट्यूड एक्सप्रेस करें। यह अपने से प्रेम का ही एक तरीका है। इससे आप एक बेहतर इंसान बनते हैं।
7। समय निकालें : स्टूडेंट्स करियर और कॉम्पटिशन की आपाधापी में दौड़ते-हाँफते रहते हैं। रिलेक्स होने के लिए पर्याप्त समय निकालें। यह आपकी स्पिरिट पर जबर्दस्त असर करती है। अपने पंसदीदा म्यूजिक सुनें या वह करें, जिसमें आप भरपूर एन्जॉय कर सकें।
8। जोखिम लें : कई बार स्टूडेंट्स किसी तरह का जोखिम लेने से डरते हैं। वे चाहते हैं कि वे अपने कम्फर्ट जोन में ही रहें। याद रखिए केल्कुलेट रिस्क कभी किसी को नुकसान या आहत नहीं करती। इसलिए अपने कम्फर्ट जोन से बाहर निकलकर कुछ अच्छा, अतिरिक्त करने की कोशिश करें। यह तुरंत कॉन्फिडेंस बढ़ाता है।-------------- पंकज तिवारी सहज 

भारत और भाई-भतीजावाद

इसे अच्छी, बुरी या भद्दी बात कहें लेकिन भाई भतीजावाद एक ऐसी सच्चाई है जिसे अनदेखा नहीं किया जा सकता। यह बड़े पैमाने पर भारत में हमेशा से मौजूद रही है और आज जैसी स्थितियाँ हैं उन्हें देखकर कहा जा सकता है कि यह हमेशा बनी रहने वाली बीमारी है।
अपने चारों ओर नजर डालिए और आप पाएँगे कि सभी पेशेवर क्षेत्रों में, राजनीति हो या उद्योग, बड़े बहुराष्ट्रीय संगठन हों या खेल या फिर नौकरशाही की बात ही क्यों न हो सभी जगह भाई-भतीजावाद का बोलबाला है। इसलिए हरेक विवेकशील मस्तिष्क में यह बड़ा सवाल पैदा होता है कि क्या यह ऐसी चीज है जिसके बिना समाज चल सकता है और क्या समाज को इसके बिना चलना चाहिए।
देश में भाई भतीजावाद की जड़ें भारतीय समाज के बुनियादी ढाँचे में ही बनी हुई हैं। एक भारतीय परिवार का तानाबाना कुछ इस तरह बना होता है कि बच्चे (और विशेष रूप से बेटे) वहीं से शुरू करते हैं जहाँ पर उनके पिता या चाचा ने छोड़ा हो। भारत में व्यापक रूप से फैले भाई-भतीजावाद की शुरुआत भी यहीं से होती है। इस कारण से एक डॉक्टर का बेटा डॉक्टर, एक इंजीनियर का बेटा इंजीनियर बनता है, एक व्यवसायी का बेटा अपने पिता के व्यवसाय को संभालता है और एक राजनीतिज्ञ का बेटा भी राजनीतिज्ञ ही बनता है।
और यह यह सब पाने के लिए हम सभी भाई-भतीजावाद का सहारा लेते हैं। कारण यह होता है कि प्रत्येक बच्चा इतना योग्य या प्रतिभाशाली नहीं होता जितना कि उसके माता-पिता हों, प्रत्येक बच्चा यह भी नहीं चाहता है कि वह भी वही करे जो कि उसके दादा-पिता करते रहे हों, लेकिन ज्यादातर स्थितियों में भारतीय समाज बच्चों को वही करने को विवश करता है। और यहीं से भाई-भतीजावाद की भी शुरुआत होती है। यह मान भी लिया जाए कि कुछ लोग ऐसे होते हैं जो कि आरामदायक जीवन जीने के लिए चाहते हैं कि उनके पिता और चाचा उनके लिए रास्ता बनाएँ लेकिन ऐसे लोग भी हैं जा ेकि अपने संबंधियों के लिए सबसे अच्छा करना चाहते हैं, इसलिए यह करते हैं लेकिन अगर आप अपने जीवन और अपने आसपास के लोगों के जीवन पर गौर करें तो पाएँगे कि आश्चर्यजनक रूप से भाई-भतीजावाद का मूल कारण भारत में प्रचलित सामाजिक दबाव है जिसका प्रत्येक व्यक्ति अनुभव करता है। भारत में प्रत्येक बच्चे को अपने माता-पिता के नाम को आगे बढ़ाने का काम मिलता है और उसे उनसे बेहतर करके दिखाना होता है। इसके साथ ही माता-पिता को भी यह सुनिश्चित करना होता है कि उनके बच्चे वास्तव में उनसे बेहतर करके दिखाएँ। अन्य दूसरे समाजों की तरह जिनमें कॉलेज जाने की उम्र तक बच्चे पूरी तरह से स्वतंत्र और आत्मनिर्भर बन जाते हैं, भारत में स्थिति ठीक उल्टी होती है। यहाँ माता-पिता और बच्चों के पेशेवर जीवन हमेशा ही आपस में जुड़े होते हैं और उनकी तुलना की जाती है। और दूसरे लोग इसी चश्मे से बच्चों और उनके माता-पिता के जीवन का आकलन करते हैं। अगर कोई बच्चा कुछ अलग करना चाहता है और तो न केवल परिवार के लोग ही उसके चुनाव पर ऊँगलियाँ उठाते हैं वरन परिवार के बाहर भी लोग बच्चे के भविष्य पर सवाल खड़े करने से नहीं चूकते हैं। यह एक कारण है कि क्यों भारतीय पेशेवर लोगों का जीवन भी बड़े पैमाने पर परम्पराओं और रीतिरिवाजों की बेड़ियों से जकड़ा होता है। इस कारण से परंपरागत और रुढ़िवादी पेशों का चुनाव आज भी सबसे ज्यादा होता है।और यह न केवल पुरानी पीढ़ी की ओर से किया जाता है वरन इसे वर्तमान पीढ़ी भी प्रश्रय देती है क्योंकि भाई-भतीजावाद से सभी के लिए बहुत कुछ आसान हो जाता है और इससे समाज के लोग भी चुप हो जाते हैं। पर जब तक यह रवैया नहीं बदलता है भारत में बहुत से महत्वपूर्ण क्षेत्रों में हमेशा ही प्रतिभाओं की कमी देखी जाती रहेगी। अब यह क्षेत्र शोध का हो या सैन्य बलों का अथवा समाजसेवा का। जब तक माता-पिता और बच्चे, चाचा-भतीजा और समाज, सभी मिलकर भाई- भतीजावाद को नकारते नहीं हैं और निजी रुचि तथा प्रतिभा को सम्मान नहीं देते हैं तब तक भारत के पेशेवर लोगों के परिदृश्य में बहुत अधिक बदलाव नहीं देखा जा सकेगा और बहुत सारी छिपी हुई प्रतिभा लोगों के सामने नहीं आ पाएँगी।---------------------पंकज  तिवारी सहज  

Thursday, July 16, 2009

गरीब जनता के धन का दुरपयोग

हमारे उत्तर प्रदेश की तुलना देश के सबसे पिछडे राज्यों में की जाती है क्योकि यहाँ पर संसाधनों का अभाव है। यहाँ पर रोजगार के उतने अवसर उपलब्ध नही जितने की अन्य राज्यों में है ,हमारे प्रदेश की जनता हमेशा अभाव में ही जीती है.हमारे प्रदेश की कोई भी सरकार इस तरफ़ ध्यान नही देती सिर्फ़-सिर्फ़ हमेशा वोट इ राजनीती करती है जनता को क्या परेशानी हो रही है,जनता को क्या चाहिए इससे उसका लेना देना नही रहता वो हमेशा वोट के चक्कर में परेशान रहती है उसका जनता से कोई लेना देना नही रहता इन्ही सब कारणों से हमारे प्रदेश में कोई कल कारखाना नही लग पाता रोजगार के लिए यहाँ के लोग अन्य प्रदेशो में जाते है और जलालत झेलते है...............................................................................................................................................................................

इसके वावजूद प्रदेश के विकास कार्यो पर धन खर्च करनेके वावजूद कोई भी मुख्यमंत्री जीवित रहते अपने पुतलो को स्थापित करने के लिए जनता की गाढ़ी कमाई को फिजूलखर्ची में बर्बाद करे तो इसे कौन सी मानसिकता कही जाए ?यह सवाल निश्चित रूप से प्रदेश की जनता की जेहन में उठ रहा होगा १२५८ करोड़ जनता का धन खर्च कर जगह जगह जीवित रहते ही अपने स्वयं के पुतले लगवाए इसे क्या कहेंगे ?मामला जनहित इ याचिका के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट पंहुचा इस प्रकरण में कोर्ट के हस्तक्षेप की आशंका होते ही न केवल पूर्ण बने बल्कि अपूर्ण प्रतिमाओ का भी अनावरण कर डाला और उन्होंने पुतलो का समर्थन करते हुए सामाजिक उत्थान का तर्क दिया है । यह कैसा सामाजिक उत्थान है ?इस सामाजिक उत्थान से कितनो को रोजी रोटी मिली और कितनो का पेट भर रहा है एसे सामाजिक उत्थान का क्या औचित्य ?.......................................................................................................................

हमारे उत्तर प्रदेश में मानव विकास सूचकांक व साक्षरता का ग्राफ सबसे कम है । करीब ६ करोड़ लोग आज भी गरीवी रेखा के निचे जीवन यापन कर रहे है । स्वास्थ्य सुबिधाओ का ग्रामीण क्षेत्रो में भयंकर अभाव है । शिशु मृत्यु ददर अधिक है एसे पुतलो से कौन सा जनता का उद्धार होने वाला है। क्या दिन हिन् ,गरीबो की भूख इन पुतलो को देखने से मिट जायेगी ,अगर पुतलो को देखकर भूख मिटती तो क्या बात है ये तो आश्चर्य हो जाता। जबकि भूख का अर्थशास्त्र कुछ अलग है भूख केवल अमीरों को ही नही ,गरीबो को भी लगती है,और भूखे पेट अनाज मागते है न की पुतला ,और भूख मिटाने के लिए गरीब किसी भी कार्य को करने से नही कतराता ,वह मेहनत से धनार्जन कर अपने और अपने परिजनों की भूख मिटाने के लिए दो जून की रोटी जुटाना चाहते है। लेकिन हमारी माननीय मुख्यमंत्री ने तर्क दिया है की पुतलो के निर्माण में जुटे लोगो ओ रोजगार मिला है,यह कितना हास्यापद तर्क है इससे कितने दिनों तक रोजगार उपलब्ध होगा । जिस राज्य में ६०००००००(६ करोड़ ) लोग गरीबी रेखा के निचे जीवन यापन कर रहे हो उनमे से केवल १००० लोगो को एसा अल्पकालीन रोजगार मिले तो क्या उन ६ करोड़ लोगो की भूख मिट जायेगी एसा तो नही हो सकता न एक कमाए १००० खाए ..................................

किसी भी प्रदेश की सरकार का प्रथम दायित्व होता है की वह अपने प्रदेश की जनता के हाथो को काम दे ,उन्हें दो जून की रोटी का जुगाड़ करे ,अच्छा आशियाना न दे सके तो कम से कम उनको एक छत मुहैया कराये ,स्वास्थ्य सुविधाए उपलब्ध कराये ,सभी को शिक्षा के अवसर उपलब्ध कराकर साक्षर बनाने की दिशा में योजनाये बनाये । लेकिन मायावती ने इन सभी मूलभूत आवश्यकताओ को किनारे रख कर अपने पुतलो को खड़ा करने पर करोडो खर्च कर दिए ,जोकि काफी शर्मनाक बात है । दलितों की मसीहा का तगमा लटकाकर कुर्सी के लिए सोसल इंजीनियरिंग का फार्मूला सामने कर चुनाव लड़ने की रणनीति बनाई ,कहा गया दलितोद्धार ?अपने पुतलो को लगवाने का इतना शौक वह भी जनता के धन से ,इस धन से अगर गरीबी मिटाने ,मूलभूत सुबिधाये मुहैया कराने एवं शिक्षा मुहैया कराने के लिए करती तो उत्तर प्रदेश की जनता उन्हें लाख-लाख धन्यवाद एवं साधुवाद देती । प्रदेश की करोडो जनता भूखे पेट सोने को मजबूर है और मायावती गरीव जनता का निवाला छिनकर अपने महिमामंडन के लिए करोडो कर्च कर रही है । एक ओर दलितों,गरीबो को उन्हें अपना हक़ दिलाने की बात करती है ,और दूसरी ओर उन्ही का शोषण -----------------------------------------------------------------------जितना पैसा इस पर खर्च हुआ उतने पैसे से पाता नही कितनो को रोजगार मिल गया होता । प्रदेश का कितना विकास होता हमारा प्रदेश भी दुसरे प्रदेशो से टक्कर लेता लेकिन हमारे प्रदेश का दुर्भाग्य है किउसको यह नसीब नही है उसको गरीबी में ही निर्वहन करना पड़ेगा -----------------------------------------------------------------------------------------------------पंकज तिवारी "सहज "

Saturday, June 27, 2009

प्रकृति और सांस्कृतिक धरोहर का पालना- उत्तरप्रदेश

आगरा : मुगल शहंशाह शाहजहाँ और मुमताज बेगम के अमर प्रेम के प्रतीक ताजमहल का शहर। मुगल शहंशाहों के जमाने में भारत की राजधानी, विश्व के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक। दिल्ली से दूरी लगभग 200 किलोमीटर। भारत के प्रमुख शहरों से हवाई सड़क और रेल मार्गों द्वारा जुड़ा हुआ। तापमान गर्मियों में 45-21, सर्दियों में 31-4।2।अन्य दर्शनीय स्थल : दयाल बाग, फतेहपुर सीकरी। 60 किलोमीटर दूर भरतपुर राष्ट्रीय उद्यान एवं अभयारण्य। कृष्ण भक्तों का प्रमुख उपासना स्थल मथुरा और ब्रजभूमि भी निकट ही है।


वाराणसी : प्रमुख हिंदू तीर्थ। संभवतः भारत का प्राचीनतम्‌ नगर। भारत के राष्ट्रीय राजमार्गों क्रमांक 2, 7 और 29 के जंक्शन पर स्थित।हिंदुओं का पवित्रतम्‌ तीर्थ स्थल रानी अहिल्याबाई होलकर द्वारा सन्‌ 1777 में निर्मित विश्वनाथ मंदिर के अलावा बनारस के गंगाघाट विदेशियों के लिए भी बहुत बड़े आकर्षण का केंद्र हैं। हिंदू तीर्थ के अलावा वाराणसी में ज्ञानव्यापी मस्जिद 1 तथा 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित। बौद्ध तीर्थ स्थान सारनाथ है। यहाँ केंद्रीय तिब्बतीय अध्ययन संस्थान भी है और कहा जाता है कि भगवान बुद्ध ने अपना पहला उपदेश 'महा-धर्म-चक्रप्रवर्तन' यहीं पर दिया था। उसी के स्मारक के रूप में यहाँ सम्राट अशोक महान ने एक स्तूप का निर्माण भी किया।14 किलोमीटर की दूरी पर स्थित रामनगर संग्रहालय पुरातत्व प्रेमियों के लिए आकर्षण का केंद्र। 80 किलोमीटर दूर विंध्याचल शक्तिपीठ, अष्टभुजा विंध्यवासिनीदेवी का मंदिर।
प्रमुख मेले तथा उत्सव : बुद्ध पूर्णिमा, सारनाथ मई महीने में, रामलीला, ध्रुपद मेला, हनुमंत जयंती, भरत मिलाप, नाककटैया मेला, महाशिवरात्रि, पर्यटन महोत्सव, गंगा महोत्सव। प्रतिवर्ष प्रबोधिनी एकादशी से कार्तिक पूर्णिमा तक (अक्टूबर-नवंबर)संग्रहालय और कला वीथिकाएँ : भारत कला भवन, फोर्ट म्यूजियम तथा एबीसी आर्ट, बनारसी साड़ियाँ।


लखनऊ : मुस्लिम तहजीब, नजाकत और नफाजत का शहर लखनऊ उत्तरप्रदेश की राजधानी। लजीज कबाब और चिकन के कुर्तों का शहर लखनऊ देश के सभी बड़े शहरों से विमान, सड़क तथा रेलमार्गों से जुड़ा हुआ है। दिल्ली और खजुराहो से दूरी क्रमशः 569 तथा 320 किलोमीटर।प्रमुख दर्शनीय स्थल : बड़ा इमामबाड़ा, रूमी दरवाजा, हुसैनाबाद, जामा मस्जिद, रेसीडेंसी, विधानसभा भवन तथा ब्रिटिश जमाने का स्मारक लामारतीनियरे।


इलाहाबाद : गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के संगम पर स्थित इलाहाबाद या प्राचीन प्रयाग हिंदुओं के प्रमुखतम तीर्थस्थानों में से एक। प्रति बारह वर्र्षों में आयोजित होने वाले महाकुंभ, मदनमोहन मालवीय के बनारस हिंदू विश्वविद्यालय का शहर। नेहरू परिवार एवं आनंद भवन का शहर, अमिताभ बच्चन का शहर, इलाहाबाद भारत में राजनीति, साहित्य, संस्कृति एवं धर्म का केंद्र।दर्शनीय स्थल : संगम, इलाहाबाद किला, पातालपुरी, हनुमान मंदिर, खुसरो बाग, आनंद भवन, ऑल सेंड्स गिरजाघर।ऑल सेंड्स गिरजाघर : कलकत्ता के विक्टोरियल मेमोरियल के वास्तुकार विलियम एमरसम द्वारा तेरहवीं सदी की गोथिक शैली में निर्मित।निकटवर्ती आकर्षण : कौशाम्बी 60 किलोमीटर, बौद्ध तथा जैन धर्म का केंद्र, चित्रकूट 137 किलोमीटर, हिंदू तीर्थ स्थान। भगवान राम वनवास अवधि में यहाँ रहे, चित्रकूट में ही कामदगिरि, रामघाट, जानकीकुंड, हनुमान धारा, गुप्त गोदावरी तथा सती अनुसूया आश्रम। इलाहाबाद से वाराणसी 125 किलोमीटर और अयोध्या 167 किलोमीटर,और जौनपुर १०५ किलोमीटर है.


देहरादून : हिमालय और शिवालिक पर्वतमालाओं, गंगा तथा यमुना के बीच स्थित देहरादून वानिकी अनुसंधान केंद्र, भारतीय सैनिक अकादमी तथा भारतीय सर्वेक्षण संस्थान।ऋषिकेष : ऋषि-मुनियों की विचरण स्थली तथा विश्व की योग राजधानी के रूप में मशहूर ऋषिकेष अपने आश्रमों तथा गंगा के घाटों तथा गंगा पर 1929 में बने झूलते पुल लक्ष्मण झूला के लिए प्रसिद्ध है। त्रिवेणी घाट, 13 मंजिला कैलाश आनंद मिशन आश्रम, योग निकेतन, वेद निकेतन, शिवानंद आश्रम ऋषिकेष के प्रमुख आकर्षण हैं।
हिंदू संस्कृति, धर्म एवं योग विराग के लिए प्रख्यात्‌ ऋषिकेष को देहरादून, हरिद्वार तथा दिल्ली से (300 किलोमीटर लगभग) द्वारा रेल, वायु तथा सड़क मार्ग द्वारा पहुँचा जा सकता है।कार्बेट राष्ट्रीय उद्यान : सन्‌ 1936 में स्थापित भारत का प्रथम राष्ट्रीय उद्यान। मशहूर अंग्रेज शिकारी और 'द मैन ईटर्स ऑफ कुमाऊँ' पुस्तक के लेखक जिम कार्बेट की स्मृति में स्थापित इस उद्यान के साथ अब सोन नदी वन्य जीव अभयारण्य को भी जोड़ दिए जाने के बाद अब इस उद्यान का क्षेत्रफल 520 से बढ़कर 1318 वर्ग किलोमीटर हो गया है। कुमाऊँ के तत्कालीन ग्रामीणजन के बीच कार्बेट को बड़ी इज्जत से देखा जाता था, क्योंकि उन्होंने अनेक आदमखोर शेरों का शिकार कर राहत पहुँचाई, मगर बाद में कार्बेट ने बंदूक के बजाय कैमरे से वन्य प्राणियों को शूट करना शुरू कर दिया और इसीलिए उन्हें अब वन्य जीव संरक्षक के रूप में ही याद किया जाता है।कार्बेट पार्क में मौका लगने पर शेरों को भी स्वच्छंद विचरण करते हुए देखा जा सकता है। यहाँ विविध पशु-पक्षी जैसे लंगूर, मोर, चीतल, सांभर, मगर, घड़ियाल आदि देखने को मिल जाते हैं। पक्षी निहारने के शौकीनों के लिए तो कार्बेट स्वर्गोपम है।हिमालय की तराई में रामगंगा नदी के तट पर स्थित कार्बेट पार्क में रात में रुकने के लिए अनुमति रामनगर स्थित पार्क 'स्वागत केंद्र' से लेनी होती है।मसूरी : देहरादून से 34 किलोमीटर की दूरी पर स्थित मशहूर पर्वतीय सैरगाह। दो हजार मीटर की ऊँचाई पर स्थित अंग्रेजों द्वारा विकसित मसूरी को हिल स्टेशनों की रानी कहा जाता है। मसूरी में आप सर्दियों में बर्फ, बसंत में हरे-भरे वृक्षों और फूलों की वादियों, गर्मियों में शीतल बहारों और बारिश में देवदार के वृक्षों पर तैरते बादलों और रहस्यमय धुँध का आनंद ले सकते हैं।निकटतम विमानतल 58 किलोमीटर, इसके अलावा देहरादून से रेल यात्रा, सड़क मार्गों से जुड़ा हुआ। प्रमुख दर्शनीय स्थल सुप्त ज्वालामुखी, गन हिल जहाँ रज्जू मार्ग (रोप-वे) से पहुँचेंगे। पंद्रह किलोमीटर यमुनेत्री मार्ग पर केम्परी प्रपात। निकट के सैरगाह धनोल्ली देवदार की वनराइयाँ तथा हिमाच्छादित पर्वत शिखर। 10 हजार फीट की ऊँचाई पर बना सरकंडादेवी का मंदिर (10 किलोमीटर) तथा महाभारत की पौराणिक कथा में वर्णित लाख मंडल।


हरिद्वार : प्रमुख हिंदू तीर्थ स्थान। हिमालय से निकली गंगा नदी यहाँ से मैदानों की तरफ प्रवाहित होती है। प्रति बारह वर्षों के बाद वह महाकुंभ मेला यहाँ भरता है, जो तीन-तीन वर्षों के अंतर से क्रमशः इलाहबाद (प्रयाग), नासिक तथा उज्जैन में भरता है।नगर के प्रमुख आकर्षण : प्रमुख घाट हर की पौड़ी, सांध्यकालीन आरती, शक्ति का अवतार मंसादेवी मंदिर, रोप-वे द्वारा पहुँचें, दक्ष महादेव का मंदिर। किंवदंती के अनुसार राजपक्ष के यज्ञ में अपने दामाद भगवान शिव को आमंत्रित न किए जाने से क्रुद्ध सती ने यज्ञ कुंड में आत्माहुती दे दी। परमार्थ आश्रम ऋषिकेश मार्ग पर पाँच किलोमीटर दूर स्थित दुर्गा की प्रतिमा, भारत माता मंदिर तथा चंडादेवी मंदिर।निकटवर्ती आकर्षण : राजाजी राष्ट्रीय उद्यान, अन्य जीवों के अलावा स्वच्छंद विचरण करता डेढ़ सौ हाथियों का समूह।देहरादून से मसूरी ऋषिकेश से रेल तथा बस द्वारा पहुँचें। यहीं से तीर्थ यात्री शिमला, नैनीताल, अलमोड़ा, उत्तर काशी, गंगोत्री और बद्रीनाथ के लिए भी बसें पकड़ सकते हैं।नैनीताल : मध्य हिमालय के कुमांड इलाके में बसे नैनीताल को उसकी अनेक झीलों के कारण झील प्रदेश भी कहते हैं। पहाड़ियों से घिरी प्रमुख झील को नैनीदेवी के कारण कहते हैं और इसीलिए इसे सुरम्य पर्वतीय स्थल कहा जाता है।नैनीताल विभिन्न सैलानियों को अपने ऐतिहासिक स्थलों, वन्य जीव आरक्षित क्षेत्रों, फल, बागों, धार्मिक स्थलों के कारण आकर्षित करता है। तल्ली ताल और मल्ली ताल के बाजारों को एक सड़क जोड़ती है। पर्यटक कार्यालय, ट्रेवल कंपनी तथा रेल और बस बुकिंग ऐजेंसियाँ तल्ली ताल में ही स्थित हैं।प्रमुख आकर्षण : नैना पीक (2610 मीट) पाँच किलोमीटर की दूरी पर स्थित पर्वत शिखर, हिमाच्छादित हिमालय की नयनाभिराम छवि प्रस्तुत करता है। पर्यटक चार कमरों वाले काष्ठ गृह से नीचे फैले नैनीताल शहर को निहार सकते हैं। स्नो व्यू (2270 मीट) का पैदल या घोड़े की पीठ पर सवारी करते तिब्बतीय गोम्पा और हिमालय श्रृंखलाओं का दर्शन।नैनी झील, सेंट जॉन चर्च (निर्माण 1847), हनुमानगढ़ एवं वेधशाला, डोरभी सीट, दो हजार मीटर की ऊँचाई पर फैला चिड़ियाघर मछली के शिकार के शौकीनों के लिए खुरपाताल और भीमताल, नौकुचियाताल। सात ताल में नौका विहार, जिम कार्बेट पार्क तथा भोवाली का केंद्र तथा फल बाजार।निकटतम रेलवे स्टेशन काठ गोदाम 35 किलोमीटर। लखनऊ, आगरा, पितली से जुड़ा हुआ। 'पर्वत टूर्स' की टैक्सियाँ स्थानीय परिवहन हेतु निश्चित भाड़ों-दर पर उपलब्ध। सायकल-रिक्शे भी हैं, किंतु नैनीताल की सैर सबसे बढ़िया पैदल चलकर ही होगी। ठहरने के लिए ठाठदार और किफायती दोनों किस्म के होटल हैं।


पंकज तिवारी सहज
(संतोष)



आस्था का स्थल इलाहाबाद

पंकज तिवारी "सहज"
इलाहाबाद हमारे भारतवर्ष का एक प्रसिद्ध तीर्थस्थल माना जाता है। जनश्रुति के अनुसार इलाहाबाद में एक अनोखा मंदिर है हनुमान मंदिर। यह भव्य मंदिर इलाहबाद किले के पास स्थित है। उत्तर प्रदेश के प्रसिद्ध तीर्थस्थल इलाहाबाद के हनुमान मंदिर में भगवान सोई हुई अवस्था में हैं। इलाहाबाद में हनुमान मंदिर पर्यटकों के लिए एक मुख्य आकर्षण का केन्द्र है।प्रति वर्ष हजारों श्रद्धालु इस भव्य मंदिर में दर्शन करते हैं। ऐसी मान्यता है कि यहाँ दर्शनकर भक्त जनों की मनोकामनाएँ पू्र्ण होती हैं।गंगा, यमुना, सरस्वती तीन भव्य नदियों का संगम यहाँ पर होता है इसलिए भारत के प्रमुख पवित्र स्थानों में इलाहाबाद प्रमुख है। पहले यह प्रयाग के नाम से यह स्थान प्रसिद्ध था । इलाहाबाद में श्रद्धालुओं के लिए अन्य आकर्षण के केन्द्र भी हैं:-- महाकुम्भ मेला जोकि अपने ऐतिहासिक, आध्यात्मिक महत्व एवं विशालता के लिए प्रसिद्ध है। इस स्थान पर बारह सालों में एक बार कुंभ का मेला आयोजित होता है। आस्था शिक्षा एवं संस्कृति से ओत-प्रोत इस नगरी में प्रति वर्ष माघ मेले का आयोजन होता है। सम्राट अकबर ने 1583 में यमुना तट पर किला बनवाया था। किले के अंदर 232 फुट का अशोक स्तम्भ आज भी सुरक्षित है।
पातालपुरी मंदिर की मान्यता है कि किले के भूगर्भ में भगवान राम चित्रकूट-गमन के समय इस स्थान पर आए थे। मनकामेश्वर मंदिर यह मंदिर अन्य शिवालयों में से प्रमुख हैं। यह यमुना जी के पवित्र तट पर स्थित है.
नवरात्रि के समय असंख्य श्रद्धालु इस मंदिर में एकत्रित होते हैं। अलोपीदेवी मंदिर में प्रत्येक सोमवार एवं शुक्रवार के दिन असंख्य श्रद्धालु आते हैं।नवरात्रि के दिनों में देवी की पूजा-अर्चना होती है। इस प्रसिद्ध भव्य मंदिर में एक शक्तिपीठ में एक कुण्ड एवं ऊपर एक झूला पूजित होता है।यह मन्दिर दारागंज रोड पर अलोपीबाग में स्थित है।

हनुमत निकेतन : इस मंदिर में मुख्य मूर्ति हनुमानजी की है, दक्षिण भाग में श्रीराम, लक्ष्मण और जानकी की मूर्तियाँ हैं तथा उत्तर भाग में गुत्रगा की प्रतिमा स्थित है।कल्याणीदेवी मंदिर प्रयाग में स्थित यह मंदिर एक प्रसिद्ध शक्तिपीठ है। मंदिर में तीन मुख्य मूर्तियाँ हैं। कल्याणी देवी के बाएँ तरफ छिन्नमस्ता देवी की मूर्ति है और दाएँ तरफ शंकर-पार्वती की मूर्तियाँ हैं।

स्वराज भवन- आनंद भवन 1930 में मोतीलाल ने इस भवन को राष्ट्र के नाम समर्पित कर दिया था परंतु यह अब स्वराज भवन के नाम से जाना जाता हैं। यह भवन नेहरू परिवार के स्मारक निधि का कार्यालय तथा चित्रकला से संबंधित बाल विद्यालय चल रहा है। किसी स्थान के इतिहास से परीचित होना चाहते हैं तो वहाँ के संग्रहालयको आप देख सकते हैं। ऐतिहासिक एवं अनोखी वस्तुओं से युक्त इस संग्रहालय की स्थापना सन् 1931 में की गई थी। इस संग्रहालय में ई। पूर्व शताब्दी के अवशेष प्रदर्शित किए गए हैं, जिनमें प्राचीन वाद्य यंत्र, पाषाणकालीन पत्थर, प्राचीन मूर्तियों की वीथिकाएँप्रमुख हैं।
इलाहाबाद विश्वविद्यालय उच्च शैक्षणिक सांस्कृतिक नातानरण के कारण विश्व प्रसिद्ध इस विश्वविद्यालय की स्थापना 1872 में हुई थी। इस विश्वविद्यालय को ‘ऑक्सफोर्ड ऑफ दी ईस्ट’ के नाम से जाना जाता है ।
खुसरोबाग लगभग 17 बीघे क्षेत्र में फैला हुआ ऐतिहासिक दर्शनीय स्थल है। माना जाता है कि जहाँगीर के पुत्र खुसरो को इस बाग में स्थित पूर्वी इमारत में दफनाया गया है।यहाँ की मुख्य भाषा हैं हिंदी, अँग्रेजी, उर्दू, एवं अवधी भाषा(इलाहाबादी) जोकि वहाँ की स्थानीय भाषा हैं। यहाँ के निवासी खड़ी बोली भी में बातचीत करते हैं।
पंकज तिवारी"सहज"

आत्मा को झकझोरती --------- एक कृति

समीक्षक:---- संतोष तिवारी (मुंबई)


वृक्षों
के लतिकाओं मे के सनसनाहट को झेलते झुरुमुटो में छिपे रहस्यों को चपलता के साथ रंगओ में उलझा कर सब के समक्ष प्रस्तुत करने का दम्भ भरने वाला यह युवा चित्रकार ,कवि के गूढ़ रहस्यो तथा सामाजिक बेदनाओ से दूर नही रह सका। यह अपना छोटा सा संसार इसी प्राकृतिक छटाओं में ढूढ़ता फिरता है तथा प्रकृति के गूढ़ रहस्यों को उजागर करने के बाद ही संतुष्टि की साँस लेता है। उपर्युक्त चित्र में कलाकार ,समाज को दर्द युक्त नारी के रूप मे जिया है ,जिस पर गीदरो की क्रूर निगाहे उन्मुक्त भावनावो से टूट पड़ने में पीछे नही रहना चाहती। क्या वाकई लाल चोंगा पहने दागियों से ऊब चुकी है हमारी पृथ्वी?नारियो की सबसे अमूल्य धरोहर कही जाने वाली इज्जत सामाजिक परिदृश्य में भी काफी हद तक सच साबित होती है लेकिन क्या सुरक्षित है ? क्या हम बचा पाने में सक्षम है समाज की इज्जत जिसका की वो हकदार है। इन्ही गूढ़ रहस्यो में उलझा ,अचंभित कर देने वाला सच सब के सामने प्रसतुत करके उसके ह्रदय को उधेलित कराने का यह वीणा उठाया है नगर के ही
युवा चित्रकार तथा कवि पंकज त्रिपाठी 'सहज' ने तमाम पुरस्कार प्राप्त 15 वर्ष की अवस्था में (2004) ही पूर्व प्रधानमंत्री माननीय अटल विहारी वाजपई द्वारा काव्य क्षेत्र में प्रसस्ति पत्र भी प्राप्त कर चुका है। इसके तीन कृतियों का चयन राज्य ललित कला अकादमी लखनऊ में भी किया जा चुका है। पंकज आजमगढ़ ,गाजीपुर ,वाराणसी आदि क्षेत्रो में सामूहिक तथा एकल प्रदर्शनिया भी लगा चुका है। महात्मा गाँधी काशी विद्यापीठ के तृतीय परिसर शक्तिनगर से बी.ऍफ़ .ऐ । चतुर्थ वर्ष के इस छात्र के कबिताओ का प्रसारण आकाशवाणी वाराणसी तथा ओबरा से समय-समय पर होता रहता है।
पंकज तिवारी "सहज"



Thursday, April 23, 2009

विकास के मुद्दे पर दें मत

विकास के मुद्दे पर दें मत इस बार चुनाव में देशवासियों को विकास के मुद्दे पर ही विचार कर वोट डालने के लिए प्रेरित किया जा रहा है। लोगों को जात-पात और धर्म से ऊपर उठकर राष्ट्र और उसके विकास के बारे में विचारशील होने के लिए प्रेरित किया जा रहा है। इसके लिए प्रिंट व इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का सराहनीय योगदान है। आज भी पश्चिम बंगाल व उड़ीसा में एक तबका गरीबी रेखा के ऊपर नहीं उठ सका है। पश्चिम बंगाल के पुरुलिया जिले में खेतिहर मजदूर संगीनों के साये में खेती करते है। उड़ीसा में नालकों की खानों पर माओवादियों व छत्तीसगढ़ में राजनेताओं और पुलिस पर हमले करना सरकार के प्रति आक्रोश दर्शाता है। देश की भ्रष्ट व कुव्यवस्था के कारण कुछ लोग आतंक का रास्ता अपनाने को मजबूर है। इसलिए आजादी के 60 साल बाद ही सही मीडिया के सहयोग से आम आदमी विकास के मुद्दे पर वोट करेगा तो राजनीतिक दलों को भी विकास की भाषा समझ में आने लगेगी और आम आदमी का उत्थान होगा। वी.के. शर्मा, पीतमपुरा, नई दिल्ली धर्म की राजनीति देश को स्वतंत्र हुए साठ साल से अधिक का वक्त हो गया लेकिन विडंबना है कि इतने बड़े लोकतंत्र में आज भी धर्म की राजनीति की जा रही है। उत्तेजित एवं भड़काऊ भाषण देकर जनता को गुमराह किया जाता है। जनता बाद में झूठे जनप्रतिनिधियों का असली चेहरा समझ पाती है। भारत एक धर्म निरपेक्ष देश है, जहां सभी धर्मो के लोग भाईचारे के साथ रहते हैं। स्वार्थी जनप्रतिनिधि वोटों की खातिर धार्मिक उन्माद फैला कर राजनीति की अंगीठी पर वोटों की रोटियां सेकते हैं। सभी राजनेता मूल मुद्दों से भटक जाते हैं। पिछले बीस साल से मंदिर-मस्जिद, हिंदू-मुस्लिम की राजनीति हो रही है, लेकिन विकास, रोजगार और सुरक्षा के मुद्दे गौण होते जा रहे हैं। यदि सभी अशिक्षित लोग शिक्षित हो जाएं तो सांप्रदायिक राजनीति अपने आप खत्म हो जाएगी। राजनीति में युवाओं को आगे आना चाहिए तभी देश उन्नति करेगा । अजय गुप्ता, दिल्ली चुनाव आयोग की सीमा चुनाव आयोग को देख कर लगता है कि उसकी हालत नख, दंत विहीन शेर जैसी है। जो दहाड़ तो सकता है लेकिन नेताओं पर कोई कठोर कार्रवाई नहीं कर सकता है। इसी बात का फायदा उठाकर तो सभी दल के नेता मनमानी करने पर उतारू हैं। चुनाव के अभी तक के हाल पर नजर डालें तो प्रतिदिन कोई न कोई नेता अनर्गल बयान दे रहे है। व्यक्तिगत लांछन से लेकर वोट की खातिर नेता इतने विवादस्पद बयान दे रहे हैं कि लगता नहीं है कि आचार संहिता भी है। आयोग के पास शिकायतों का अंबार है। शिकायत करने वाले भी किसी न किसी दल के हैं और खुद इस कृत्य में शामिल हैं। आयोग भी अपनी साम‌र्थ्य के अनुसार कार्रवाई करके किसी तरह चुनावी यज्ञ पूरा कर देना चाहता है। अब सवाल उठता है कि चुनाव आयोग द्वारा नेताओं पर कोई ठोस कार्रवाई करने के लिए क्या कभी कोई ठोस कानून बनेगा। एक बात तो साफ लग रही है कि चुनाव आयोग नेताओं पर कोई कार्रवाई करेगा सिर्फ दहाड़ने वाला शेर रहेगा। युधिष्ठिर लाल कक्कड़, गुड़गांव राजनाथ का दृष्टिकोण लोकसभा चुनाव को लेकर सभी दल एक-दूसरे पर कटाक्ष करते नजर आ रहे हैं। सोनिया गांधी ने लालकृष्ण आडवाणी की आलोचना करते हुए कहा कि वे राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के निर्देश पर चलते हैं। उन्हें शायद यह अंदाजा नहीं होगा कि इस बयान से आडवाणी और भाजपा की सहर्ष स्वीकार्यता में कई गुना वृद्धि होगी। संघ की अनुशासन और सामाजिक समरसता का अनुपालन बहुत लोग करना चाहते है। कांग्रेस में तत्वनिष्ठा नाम की कोई चीज है ही नहीं वह पूरी तरह व्यक्ति निष्ठ है। इस आरोप से भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने कहा था कि भाजपा ने संघ से मार्गदर्शन न कभी लिया और न लेगा। उन्हें संघ के प्रति अपने दृष्टिकोण को स्पष्ट करके समाज में व्याप्त भ्रम को दूर कर अपने वक्तव्य का खंडन करना होगा। डा. बलराम मिश्र, गाजियाबाद जाति-पाति से ऊपर उठे चुनावी हलचल समुद्र की लहरों की तरह बढ़ती ही जा रही हैं। आज का चुनाव वास्तव में पूरी तरह जातिवाद पर आधारित चुनाव लग रहा है। मुस्लिम बहुल इलाके से उसी जाति विशेष को टिकट दिया जाता है और जाट बहुल इलाके से उसी जाति के व्यक्ति को टिकट दिया जाता है। जनता भी स्वजाति प्रेम के कारण समझ नहीं पाती कि कौन दागी है या कोई उम्मीदवार सही है। जनता को चाहिए कि जाति पाति की भावना से ऊपर उठकर सुयोग्य उम्मीदवार को वोट दे। संजीव वर्मा, दिल्ली गिरेबान में झांकें टीवी के माध्यम से एक प्रतिष्ठित चैनल के द्वारा प्रसारित प्रोग्राम कौन बनेगा प्रधानमंत्री प्रोग्राम को बंद कर देना चाहिए। चंद लोग ऐसे प्रोग्राम को पूर्व नियोजित कर ऐसे निष्पक्ष प्रोग्राम को सफल होने से पहले ही निष्कर्ष कर वाह-वाही लूटते हैं। अगर देखा जाए तो हम नोट के बदले वोट की जगह इस्तेमाल होकर देश की बागडोर ऐसे स्वार्थी तत्वों के हाथों में दे देते हैं जो सपेरे की तरह बीन बजा कर हमें नचाते हैं और हम नाचते रहते हैं। इसलिए हमें अपने गिरेबान में झांकना होगा --------------पंकज तिवारी "सहज"

अमृत की बूँद

अमृत की बूंद मनुष्य जब जन्म लेता है तो उसी समय से अमृत की एक बूंद पाने के लिए इस संपूर्ण संसार रूपी सागर में गोते लगाने लगता है, क्योंकि यह बूंद शाश्वत एवं अनश्वर है। इस नश्वर संसार में जो आनंद प्राप्ति का लक्ष्य है वह उन्हीं धुंधले बादलों के समान है जो अपनी छाया के माध्यम से भव को प्रकाशित करने वाले भाष्कर को ढक लेते हैं। सूर्य अपने स्थान पर है, किंतु भौतिकता के बादल उन्हें ढक लेते हैं। मनुष्य भी अज्ञानता रूपी बादलों के बीच खोया है। वह संसार के भोग में निरत होकर दिशाविहीन हो जाता है। इसी मोह रूपी संसार में अनिश्चित लक्ष्य के लिए इधर-उधर दौड़ने लगता है, लेकिन जीवन निरर्थक (अर्थहीन) हो जाता है। इस पर विज्ञान ने अपनी प्रगति के माध्यम से भूत, भविष्य और वर्तमान (त्रिकालज्ञ) बनने की चेष्टा की है तथा कुछ ऐसे भी कार्य संपन्न किए हैं जो प्रकृति के विपरीत हैं। हम प्रकृति से विपरीत दिशा में बढ़ते हुए अपने आपको प्रगति की दिशा में रखे हैं। यह सांसारिक ज्ञान उस मार्गदर्शक के समान है जो हमें वास्तविकता में अपनी दिशा की ओर खींचकर दिशाहीन कर देता है। ऐसे में हमारे पास जीने के लिए मात्र लौकिक साधन ही बचते हैं और व्यक्ति उस अमृतरूपी बूंद की तलाश में अपने सारे उद्यम करता है और इसी आशा में हमेशा ही तल्लीन होकर पुरुषार्थ करता है। यह जीवन तब तक अज्ञानता और आडंबर की चादर है, जब तक उसे ज्ञान रूपी अमृत की बूंद नहीं मिलती है। आनंदरूपी अमृत की एक बूंद के बिना कल्पित पंचकोश (अन्नमय, प्राणमय, ज्ञानमय, विज्ञानमय, आनंदमय) तथा पंचजन्य (गंधर्व, देव, पितर, राक्षस, असुर) सभी शून्य हैं। बिना आनंद के हमारी सभी योजनाएं समस्त कार्य व्यवहार अतीव दुर्गम हैं। ईश्वर की शक्ति उसी आनंद से है। यह आनंद की अमृतमयी एक बूंद उस महासागर के समान है जिस समुद्र में यह जीव रूपी मछली उस रस का पान करती है। इस बूंद का पान करना उस गूंगे व्यक्ति के समान है जो अनेक व्यंजनों का भोग करके भी उस स्वाद के बारे में नहीं बता सकता। इस अमृत बूंद के बिना जीवन निष्प्राण है। इसे प्राप्त करने के लिए ज्ञानी जन अनेक स्थानों में खोज करने के बाद अपनी आत्मा में खोजता है और उसे पाकर आत्मसंतोष, आत्मनिधि के साथ प्राप्त होता है। -------- पंकज कुमार तिवारी   

परमात्मा की मित्रता

परमात्मा की मित्रता :------------------------------------------------------------------------ओउम् विष्णो: कर्माणि पश्यत यतो व्रतानि परस्पशे। इन्द्रस्य युज्य: सखा।
अर्थात् उस सर्वव्यापक सर्वेश्वर भगवान की सृष्टि रचना, पालन व विविध कर्मो को देखो, जिससे जीव ज्ञान प्राप्त करता है वह परमात्मा जीवात्मा का सदा मित्र है। ऋग्वेद की यह ऋचा स्पष्ट प्रकट करती है कि ईश्वर हमारा सच्चा मित्र है, परम मित्र है। मानव एक सामाजिक प्राणी है इस नाते समाज के ही प्राणी उसके मित्र होते हैं। आशय ये नहीं कि सांसारिक मित्र सच्चे नहीं होते। वह सच्चे होते हैं किन्तु सिर्फ विरले। वह सच्चे विरले मित्र भी स्थिति परिस्थितियों के परिणामस्वरूप बदल जाते हैं या बदल सकते हैं। वह अपनी सीमित शक्ति साधना से मददगार भी हो सकते हैं, किन्तु हर क्षण ईश्वर की तरह साथ नहीं रह सकते। भौतिक मित्र जो सच्चे होते हैं वह कुपथ पर जाने से रोकते हैं। बुराइयों को दूर कर अच्छाइयों की ओर ले जाते हैं। यह सत्य है, किन्तु कई बार वह पारिवारिक अथवा भौतिक विवशताओं में विवश हो जाते हैं। किन्तु यदि हमने ईश्वर को अपना मित्र मान लिया है तो वह हर क्षण हमारे साथ हैं। यह अहसास हर पल हमारे मन में जाग्रत रहेगा। यदि हम असत्य का साथ देना भी चाहेंगे तो सखा रूप में परमेश्वर हमें अवश्य रोकेंगे। ईश्वर सर्वश्रेष्ठ है, सर्वशक्तिमान है, उसकी मित्रता वाले मानव को भय नहीं हो सकता। ईश्वर से श्रेष्ठ कोई नहीं, अत: हमें ईश्वर से मित्रता करनी चाहिये। ईश्वर स्वार्थ रहित सबसे प्रेम करते हैं। अपने मित्र के सच्चे साथी होते हैं। ईश्वर के लिए असंभव कुछ भी नहीं, अपने मित्र के लिए सर्वस्व प्रदाता हैं। अधर्मी को वह अपना मित्र कदापि नहीं मानेंगे। अर्जुन धर्मशील थे, भावुक थे। ईश्वर ने उन्हें अपना मित्र माना। सिर्फ विश्वरूप के दर्शन ही नहीं कराये वरन् युद्ध में भी उनके सारथी बने। सच्चे मित्र की तरह कर्मयोग की सलाह दी। मानव ईश्वर से मित्रता कर देव बन सकता है। ईश्वर को मित्र मानकर उनकी उंगली थाम इस भवसागर से आसानी से पार उतरा जा सकता है। वह सबका कल्याण करते हैं। ऋग्वेद में लिखा है- देवो देवानाम् भव: शिव: सखा। अर्थात परमात्मा परमात्म भक्तों का कल्याणकारी मित्र होता है। हम उनसे पुन: पुन:श्च कह त्वमेव माता पिता त्वमेव, त्वमेव बंधुश्च सखा त्वमेव, त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव, त्वमेव सर्वमम् देव देव: हम सभी को परमात्मा को अपना मित्र अवश्य बनाना चाहिए।------------------------पंकज तिवारी सहज

Thursday, April 2, 2009

नवरात्री पर विशेष

-----:माँ दुर्गा के है नौ रूप:-----


नवरात्री में दो शब्द है -"नव" और "रात्रि" । "नव" शब्द संख्या वाचक है और "रात्रि"का अर्थ है -रात,समूह का काल विशेष । इस नवरात्री शब्द में संख्या और काल का मिश्रण है। विशेष रूप से दो नवरात्री प्रचलित है ,पहला नवरात्री चैत्र मास की शुक्ल पक्ष प्रतिपदा से और दूसरा नवरात्री क्वार मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से आरंभ होता है । प्राचीन समय में कुलचार नवरात्र मनाये जाते थे ,परन्तु अब दो नवरात्र ही प्रचलित रह गए है .शक्ति उपासना के लिए नवरात्री सर्वाधिक उपयुक्त मन जाता है । नवरात्री शक्ति पूजा का समय है। शक्ति ही वास्तव में किसी भी वास्तु के स्वरुप को स्थिर करने में समर्थ है। बिना शक्ति के कोई भी वास्तु क्षण भर भी हो नही सकती। हर व्यक्ति को यदि अपने स्वरूप की रक्षा करनी है ,उसे शक्ति संपादन अवश्य ही करना चाहिए । इसमे कोई संदेह नही कि सब के मूल शक्ति की अंशभूत एक-एक अलग शक्ति काम करती रह्ती है,इसलिए हम किसी शक्ति की उपेक्षा नही कर सकते । इस विषय में में कवि रहीमदास जी कहते है कि-------------रहिमन देखि बडन को लघु न दीजिए डारि जहा काम आवै सूई कहा करै तरवारी


शक्ति का स्वरुप वर्णन नही हो सकता ,वह सबके भीतर कार्य करती है । शक्ति वस्तु के भीतर रहने वाला वह धर्म है ,जिससे स्वरुप का लाभ प्राप्त करती है तथा स्वरुप कीरक्षा करती है । शास्त्रों में इसको बड़े ही उत्तम ढंग से समझाया गया है कि इस शक्ति का शक्तिमान के साथ तादात्मय सम्बन्ध है। इसका अर्थ है कि जो पदार्थ किसी अन्य पदार्थ से अलग भी लगता हो और अलग नही भी हो तब उसका उस पदार्थ के साथ तादात्म्य सम्बन्ध मन जाता है । इसका एक अच्छा उदहारण है जैसे :------दीपक और उसका प्रकाश । प्रकाश दीपक से अलग भी है और नही भी है । यह दो बाते अलग इसलिए है कि दीपक को प्रकाश और प्रकाश को दीपक न तो कहा जा सकता है और न ही समझा जा सकता है । कारण यदि दीपक कि लौ पर हम अपना हाथ रख दे तो जल जाएगा ,परन्तु प्रकाश में एसी कोई बात नही है । अतः सिद्ध होता है कि ये दोनों अलग है परन्तु यदि दीपक को हटा दे तो प्रकाश अपने आप हट जाएगा ,तब इसे अलग नही समझा जा सकता है । इसी तरह से सभी पदार्थो में शक्ति है । "तस्य सर्वस्य या शक्तिः "जिसका अर्थ है कि शक्ति और वास्तविक शक्ति ,जिसकी हम प्रार्थना करते है । वह सबकी है ,किसी एक कि नही है .प्रत्येक में उसका अंश है । इसलिए दुर्गा सप्तसती में भी शक्ति का निवास एक व्यक्ति या एक स्थान पर नही कहा गया है । योगनिद्रा में कहा गया है कि :------नेत्रस्य्मासिक बहुद्येभ्य्स्थोरासह ।


निर्गम्य दर्शाने तस्यो ब्रम्ह्नोस्व्यक्त्जन्य्मयाह । ।


अर्थ:---इसका अर्थ यह है कि शक्ति नेत्र ,मुख,नासिका,ह्रदय,और छाती से निकल कर दृष्टिगोचर हुई। शक्ति कही भी केवल एक ही स्थान पर नही रह्ती । वह अलग- अलग स्थानों पर विभाजित होकर सुशुप्त रह्ती है ,परन्तु सबका सहयोग होने पर कार्य कराने लगती है ।


नवरात्री के नौ दिनों में भगवती दुर्गा कि अलग-अलग तीन शक्तियों कि तीन नामो से कि जाती है प्रथम तीन दिन लक्ष्मी ,दुसरे तीन दिन सरस्वती और अन्तिम तीन दिन कलि रूप कि आराधना कि जाती है । इसीलिए दुर्गा सप्तसती में तीन बार "नमस्तस्ये " का यही अभिप्राय है कि भक्त तीनो शक्तियों को प्रणाम कर रहा है । कुछ उपासक महाकाली के १० भुजाओ वाली संहारक शक्ति कि पूजा करते है ,कुछ १८ भुजाओ वाली महालक्ष्मी के रूप में प्रतिपालक शक्ति कि पूजा करते है और कुछ ८ भुजाओ वाली महासरस्वती के रूप में उद्बोधक शक्ति के रूप में पूजा करते है। दुर्गा सप्तसती के तीनो भागो कि ये देविया अधिष्ठात्री शक्ति मणि गयी है। विस्तार से समझने हेतु भगवती दुर्गा के नौ रूपों में प्रथम शैलपुत्री ,द्वितीय ब्रम्ह्चारिणी ,तृतीय चंद्रघंटा ,चतुर्थ कुष्मांडा ,पंचम स्कंदमाता,छठा कात्यायिनी,सप्तम कालरात्रि ,अष्टम महागौरी .नवं सिद्धिदात्री है । नवदुर्गा कि प्रतिरूप नौ शक्तिया है। करके,उसे ,हम,वैष्णवी,वाराही,नारसिंही,इंद्री,शची और चामुंडा । यदि मानव माँ भगवती को सच्चे अर्थो में प्रसन्न करना चाहता है तो समस्त बुराइयों का बलिदान करके उसे माँ को प्रसन्न करना चाहिए। जिस प्रकार सौम्य रूप में शंकर ,शिव के नाम से तथा भयंकर रूप में रुद्र के नाम से प्रसिद्द है उसी प्रकार से देवी अपने सौम्य रूप में भगवती गौरी के रूप में तथा भयंकर रूप में माँ दुर्गा काली या चंडी के नाम से विख्यात है । सभी को शुभ शक्ति प्राप्त हो ऐसी हमारी माँ भगवती से सदैव प्रार्थना है:--------या देवी सर्व भूतेश शक्तिरूपेण संस्थिता ।

नमस्तस्ये नमस्तस्ये नमस्तस्ये नमो नमः ।।

------: पंकज तिवारी सहज :------






आखिर बदला गाँव (कविता)

कहा गए स्नेह व रिश्ते ,गयी कहा गाँव की रीति ।
चलता नही हल किसान गाँव में ,दिखे न राह बटोही ।
चले न समय से पछवा पुरवैया ,पवन हुआ निर्मोही ।।
वर्षा ऋतू में चले लूक जैसे बदल गयी है निति।
कहा गए स्नेह व रिश्ते ,गयी कहा गाँव की रीति।।
किसी बैग में मिले न मानुष करता वन रखवाली ।
दिखे न गाँव में हाथीघोडे गाँव के मुखिया दुवारी ।।
चारो तरफ़ दबंगई नेता ,आंख दिखा करते राजनीती ।
कहा गए स्नेह व रिश्ते ,गयी कहा गाँव की रीति ।।
भइया गए बम्बई कमाने ,टेलीफोन न भेजे पाती ।
गावे माई रोवे फूटी-फूटी ,बात न चितवा लुभाती ।।
रिश्ते की डोरी टूट गयी क्या कहा गयी एक की दूजे प्रीति।
कहा गए स्नेह व रिश्ते ,गयी कहा गाँव की रीति ।।
वृक्ष कर हे मानुष ,करता क्यों प्रकृति लडाई ।
आज है चाहत पानी की तो पछवा चले बयारी ।।
मानुष करते तंग प्रकृति को ,प्रकृति भुलाई भीती ।
कहा गए स्नेह व रिश्ते ,गयी कहा गाँव की रीति ।।
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------------पंकज तिवारी सहज "संतोष"----------
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Wednesday, April 1, 2009

यह कैसा न्याय ?

आखिर वरुण गाँधी का कसूर या अपराध क्या था ?जो निर्वाचन आयोग ने उनके खिलाफ इतना सक्रियहो गया पता नही कितने ऐसे लोग है जिनके खिलाफ आयोग के कानो पर जू तक नही रेंगती । आयोग के अलावा मायावती सरकार ने वरुण गाँधी के खिलाफ इतनी तत्परता दिखाते हुए उनके ऊपर रास्ट्रीय सुरक्षा कानून (रा.सु.का।) लगा दिया इतना बड़ा अपराध तो वरुण गाँधी ने नही किया था किउनके खिलाफ रासुका लगाया जाए । माया सरकार में पता नही कितने अपराधी प्रवृति के लोग है जिनके हाथ में सत्ता कि बागडोर है ,जो कल अपराधी थे वे आज सांसद और विधायक बन कर हमारे यहाँ कानून का निर्माण कर रहे है जिनको कल तक पुलिस खोज रही थी उन्हें आज पुलिस सुरक्षा प्रदान कर रही है ,अर्थात जिनके ऊपर रासुका लगना चाहिए वे आज शासन चला रहे है और जिनको शासन चलाना चाहिए वे जेल जा रहे । वह रे चुनाव आयोग और माया सरकार ।
आखिर वरुण गाँधी ने क्या कहा था वे सिर्फ़ हिन्दुओ की दीनदशा देखकर उनमे सिर्फ़ साहस भरने तथा उन्हें एहसास दिलाने का सिर्फ़ प्रयास किया था की वे (हिंदू) अकेले नही है बल्कि उनके साथ एक युवा गाँधी परिवार का वंसज हिंदुत्व पर स्वाभिमान ह्रदय में धारण किए हुए उनके(हिन्दुओ) के साथ खड़ा है।
वरुण गाँधी के प्रति भारतीय सेकुलर सत्ता का जो व्यवहार रहा है वह उसके अंतर्मन के हिंदुद्वेषी चरित्र को उद्घाटित करता है ,जो निर्वाचन आयोग शहाबुद्दीन,लालू यादव,आजम खान ,शिबू शोरेन ,मुख्तार अंसारी,आदि जैसे तमाम आरोपियों तथा जाती विशेष के विरुद्ध विषवमन करने वाले लोगो के बारे में कभी इतना सक्रिय नही हुआ आखिर वरुण गाँधी से उसको इतना घृणा क्यो हो गई ?क्या चुनाव आयोग को यह नही दिखता की कोयम्बतूर बम धमाके का मुख्य आरोपी मदनी न सिर्फ़ जेल में रह चुनाव लड़ा बल्कि आज वह केरल की चुनावी राजनीती का सञ्चालन करता भी है । फारुख अब्दुल्ला ने सार्वजनिक बयान दिया था की अगर अफजल को फांसी दी गयी तो सरे मुल्क में आग लग जायेगी ,अंतुले रहमान ने तो कसाब के मामले में हमारे भारतीय शहीदों का अपमान किया ,पाकिस्तानी भाषा बोली न तो उनसे मंत्री पड़ वापस लिया गया और न ही उस समय चुनाव आयोग ने कुछ बोला और आज वाही अंतुले चुनाव लड़ रहे है । क्या उस समय राहुल गाँधी और प्रियंका गाँधी बढेरा की कांग्रेस ने गीता और बाइबिल नही पढ़ी थी और नही अपने राजधर्म का किसी भारतीय विद्वान् से ज्ञान प्राप्त किया ।
केन्द्रीय मंत्री अर्जुन सिंह ने बाटला हाउस प्रकरण में शहीद मोहन चन्द्र शर्मा का अपमान कर आतंकियों के अदालती खर्च के लिए पैसा देने वाले उपकुलपति का समर्थन किया और उन्ही अर्जुन सिंह को बाद में देश के अन्य उपकुलपति चुनने वाली समिति का संयोजक बना दिया गया । वाह रे भारतीय न्याय प्रक्रिया -एसे सेकुलरों और उसी की रंग में रंगे चुनाव आयोग ने वरुण गाँधी के बारे में भाजपा को यह सलाह देने की जरुरत समझी की पार्टी वरुण गाँधी को टिकट न दे -हमारे चुनाव आयोग से और मायावती सरकार से कोई पूछने वाला नही है की अगर सुखराम,लालू प्रसाद,मुख्तार अंसारी ,शिबूसोरें,साधू यादव,अमरमणि त्रिपाठी ,राजा भइया ,धनंजय सिंह,उमाकांत,आदि अगर चुनाव लड़ सकते है तो वरुण गाँधी क्यों नही ?
वरुण गाँधी ही नेहरू खानदान में ऐसे पहले व्यक्ति हुए है जिन्होंने हिंदू धर्म के प्रति अपने स्वाभिमान को सार्वजनिक रूप से प्रकट किया है । अभी तक भारतीय राजनीती में गाँधी-नेहरू परिवार हिंदुत्व के समर्थको पर कटु आघात करने के लिए जन जाता है । पंडित नेहरू संघ के कट्टर विरोधी थे परन्तु उन्ही नेहरू के प्रपौत्र वरुण गाँधी ने आज राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की विचारधारा के साथ खुलकर खड़े है ,तो यह हिंदुत्व समर्थको के लिए भारतीय राजनीती में एक मील का पत्थर माना जाना चाहिए । वरुण गाँधी के सामान ही गाँधी-नेहरू वंशज के उत्तराधिकारी है राहुल गाँधी ,क्या कोई राहुल से यह अपेक्षा कर सकता है की वह हिंदू धर्म ,सभ्यता एवं समर्थन में एक शब्द भी कह सकते है ? मूल बात तो यह है की उन्हें हिंदू धर्म और संस्कृति की जानकारी होगी इसमे भी संदेह है ।
इस प्रकार द्वेष बस और वरुण को बदनाम कराने के लिए चुनाव आयोग और माया सरकार मिल कर वरुण गाँधी पर रासुका लगा दिया यह कितना बड़ा अन्याय है की मूल सीडी भी वरुण गाँधी को आन्ही दिखाई गयी जिसके आधार पर उन पर रासुका लगा अरे कम से कम उनकों सफाई देने के लिए समय तो देना चाहिए----------------------वाह रे चुनाव आयोग -----------------------पंकज तिवारी"सहज"

Monday, March 30, 2009

माँ दुर्गा के प्रसिद्ध मंदिर


दुर्गा के प्रसिद्ध मंदिर
देवी भागवत पुराण में 108, कालिकापुराण में छब्बीस, शिवचरित्र में इक्यावन, दुर्गा सप्तशती और तंत्रचूड़ामणि में शक्ति पीठों की संख्या 52 बताई गई है। साधारत: 51 शक्ति पीठ माने जाते हैं। लेकिन हम यहाँ प्रस्तुत कर रहे हैं वर्तमान में माँ दुर्गा के प्रसिद्ध मंदि‍रों की जानकारी।---------------------------1.दाक्षायनी (मानस)तिब्बत स्थित कैलाश मानसरोवर के मानसा के निकट एक पाषाण शिला पर माता का दायाँ हाथ गिरा था। यहीं पर माता साक्षात विराजमान हैं। यह माता का मुख्य स्थान है।---------2.माँ वैष्णोदेवीभारतीय राज्य जम्मू और कश्मीर के जम्मू के पास कटरा से माता वैष्णोदेवी के दर्शनार्थ यात्रा शुरू होती है। कटरा जम्मू से 50 किलोमीटर दूर है। कटरा से पहाड़ी लगभग 14 किमी की पर्वतीय श्रृंखला की सबसे ऊँची चोटी पर विराजमान है माँ वैष्णोदेवी। यहाँ देशभर से लाखों भक्त दर्शन के लिए आते हैं।----------------------------------------------------------------------------3.मनसादेवीभारतीय राज्य उत्तरप्रदेश के हरिद्वार शहर में शक्ति त्रिकोण है। इसके एक कोने पर नीलपर्वत पर स्थित भगवती देवी चंडी का प्रसिद्ध स्थान है। दूसरे पर दक्षेश्वर स्थान वाली पार्वती। कहते हैं कि यहीं पर सती योग अग्नि में भस्म हुई थीं और तीसरे पर बिल्वपर्वतवासिनी मनसादेवी विराजमान हैं। मनसादेवी को दुर्गा माता का ही रूप माना जाता है। शिवालिक पहाड़ पर स्थित इस मंदिर पर देश-विदेश से हजारों भक्त आकर पूजा-अर्चना करते हैं। यह मंदिर बहुत जाग्रत है।------------------------4.पावागढ़-काली मातागुजरात की प्राचीन राजधानी चंपारण के पास वडोदरा शहर से लगभग 50 किलोमीटर दूर पावागढ़ की पहाड़ी की चोटी पर स्थित है माँ काली का मंदिर। काली माता का यह प्रसिद्ध मंदिर माँ के शक्तिपीठों में से एक है। माना जाता है कि पावागढ़ में माँ के वक्षस्थल गिरे थे।----5.नयना देवीकुमाऊँ क्षेत्र के नैनीताल की सुरम्य घाटियों में पर्वत पर एक बड़ी-सी झील त्रिऋषिसरोवर अर्थात अत्रि, पुलस्त्य तथा पुलह की साधना स्थली के समीप मल्लीताल वाले किनारे पर नयना देवी का भव्य मंदिर है। प्राचीन मंदिर तो पहाड़ के फूटने से दब गया, लेकिन उसी के पास स्थित है यह मंदिर।-6.शारदा मैयाभारतीय राज्य मैहर (मैयर) नगर की पहाड़ी पर माता शारदा का प्राचीन मंदिर है जिसे आला और उदल की इष्टदेवी कहा जाता है। यह मंदिर बहुत जागृत एवं चमत्कारिक माना जाता है। कहते हैं कि रात को आला-उदल आकर माता की आरती करते हैं जिसकी आवाज ‍नीचे तक सुनाई देती है।----------------------------------------------------------------------------------------7.कालका माताभारतीय राज्य बंगाल के कोलकाता शहर के हावड़ा स्टेशन से पाँच मील दूर भागीरथी के आदि स्रोत पर कालीघाट नामक स्थान पर कालीकाजी का मंदिर है। रामकृष्ण परमहंस यहीं पर साधना करते थे। यह बहुत ही जाग्रत शक्तिपीठ है।--------------------------------------------8.ज्वालामुखीभारत के हिमाचल प्रदेश के काँगड़ा में जहाँ माता की जीभ गिरी थी उसे ज्वालाजी स्थान कहते हैं। इस स्थान से आदिकाल से ही पृथ्वी के भीतर से कई अग्निशिखाएँ निकल रही हैं। यह बहुत ही जाग्रत स्थान है।---------------------------------------------------------------------------9.भवानी मातामहाराष्ट्र के पूना में भगवती के दो मंदिर हैं पहला पार्वती का प्रसिद्ध मंदिर दूसरा प्रतापगढ़ नामक स्थान पर भगवती भवानी का मंदिर। भवानी माता छत्रपति शिवाजी महाराज की इष्टदेवी हैं।----10.तुलजा भवानीमहाराष्ट्र के उस्मानाबाद जिले में स्थित है तुलजापुर। एक ऐसा स्थान जहाँ छत्रपति शिवाजी की कुलदेवी माँ तुलजा भवानी स्थापित हैं, जो आज भी महाराष्ट्र व अन्य राज्यों के कई निवासियों की कुलदेवी के रूप में प्रचलित हैं। तुलजा माता का यह प्रमुख मंदिर है। इंदौर के पास देवास की टेकरी पर भी तुलजा भवानी का प्रसिद्ध मंदिर है।-----------------------------------------------11.माँ चामुंडा देवीचामुंडा माता के मंदिर कई हैं किंतु हिमाचल के धर्मशाला से 15 किमी पर स्थित बंकर नदी के किनारे बहुत ही प्राचीन मंदिर स्थित है। इसके अलावा राजस्थान में जोधपुर के मेहरानगढ़ किले पर स्थित चामुंडा माता का मंदिर भी प्रख्यात है। इंदौर के पास देवास की पहाड़ी पर भी माँ चामुंडा का प्रसिद्ध मंदिर है।----------------------------------------------------------------------------12.अम्बाजी मंदिर गुजरात का अम्बाजी मंदिर बहुत ही प्रसिद्ध है। अम्बाजी मंदिर गुजरात और राजस्थान की सीमा से लगा हुआ है। माउंट आबू से 45 किलोमीटर दूरी पर स्थित है अम्बा माता का मंदिर जहाँ लाखों भक्त आते हैं।---------------------------------------------------------------13.अर्बुदा देवीभारतीय राज्य राजस्थान के सिरोही जिले में स्थित नीलगिरि की पहाड़ियों की सबसे ऊँची चोटी पर बसे माउंट आबू पर्वत पर स्थित अर्बुदा देवी के मंदिर को 51 प्रधान शक्ति पीठों में गिना जाता है।---------------------------------------------------------------------------------------------14 देवास माता टेकरीमध्यप्रदेश के इंदौर शहर के पास स्थित जिला देवास की टेकरी पर स्थित माँ भवानी का यह मंदिर काफी प्रसिद्ध है। लोक मान्यता है कि यहाँ देवी माँ के दो स्वरूप अपनी जाग्रत अवस्था में हैं। इन दोनों स्वरूपों को छोटी माँ और बड़ी माँ के नाम से जाना जाता है। बड़ी माँ को तुलजा भवानी और छोटी माँ को चामुण्डा देवी का स्वरूप माना गया है।------------------------------15. बिजासन टेकरीमध्यप्रदेश की व्यावसायिक नगरी इंदौर में बिजासन माता की प्रसिद्धि भी दूर दूर तक है। वैष्णोदेवी की मूर्तियों के समान यहाँ भी माँ की पाषाण पिंडियाँ हैं। यह मंदिर इंदौर एयरपोर्ट से कुछ ही दूरी पर स्थित है।------------------------------------------------------------------------16.गढ़ कालिका-हरसिद्धिभारत के मध्यप्रदेश राज्य के नगर उज्जैन में महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर के समीप शिप्रा नदी के तट पर हरसिद्धि माता का मंदिर है जो राजा विक्रमादित्य की कुलदेवी हैं। उज्जैन के कालीघाट स्थित कालिका माता का यहाँ बहुत ही प्राचीन मंदिर है, जिसे गढ़ कालिका के नाम से जाना जाता है। इसे कालिदास की इष्टदेवी माना जाता है।--------------------------------------------17.मुम्बादेवीमहाराष्ट्र के प्रमुख महानगर मुंबई की मुम्बादेवी, कालबादेवी और महालक्ष्मी का मंदिर प्रसिद्ध है। महालक्ष्मी का मंदिर समुद्र तट पर, मुम्बादेवी के समीप तालाब है और कालादेवी का मंदिर अति प्राचीन माना जाता है।-------------------------------------------------------------------------18.सप्तश्रृंगी देवीसप्तश्रृंगी देवी नासिक से करीब 65 किलोमीटर की दूरी पर 4800 फुट ऊँचे सप्तश्रृंग पर्वत पर विराजित हैं। सह्याद्री की पर्वत श्रृंखला के सात शिखर का प्रदेश यानी सप्तश्रृंग पर्वत, जहाँ एक तरफ गहरी खाई और दूसरी ओर ऊँचे पहाड़ पर हरियाली है। इसे अर्धशक्तिपीठ माना जाता है।---------------19.माँ मनुदेवीमहाराष्ट्र और मध्यप्रदेश राज्यों को अलग करने वाला सतपुड़ा पर्वत श्रृंखलाओं की ‍वादियों में बसा हुआ है। यहाँ खानदेशवासियों की श्रीक्षेत्र कुलदेवी मनुदेवी का मंदिर। भुसावल से यावल 20 किमी की दूरी पर है। यावल से कुछ ही दूर आड़गाव में मनुदेवी का स्थान है।------------------------20.त्रिशक्ति पीठमश्रीकाली माता अमरावती देवस्थानम। इस पवित्र स्थान को त्रिशक्ति पीठम के नाम से भी जाना जाता है। आंध्रप्रदेश के विजयवाड़ा के गिने-चुने मंदिरों में से एक कृष्णावेणी नदी के तट पर बसा यह पवित्र मंदिर बेहद अलौकिक है।------------------------------------------------21.आट्टुकाल भगवतीकेरल के तिरुवनंतपुरम शहर में स्थित आट्टुकाल भगवती मंदिर की प्रसिद्धि पूरे दक्षिण भारत में है। पराशक्ति जगदम्बा केरल की राजधानी तिरुवनंतपुरम शहर की दक्षिण-पूर्व दिशा में आट्टुकाल नामक गाँव में भक्तजनों को मंगल आशीष देते हुए विराजती हैं।--------------------------22.श्रीलयराई देवीगोवा प्रांत के गाँव में श्रीलयराई देवी का स्थान बहुत ही प्राचीन और प्रसिद्ध है। नवरात्र में यहाँ पूरे गाँव के लोग अंगारे पर बहुत ही सहजता से चलते हैं और उन्हें कुछ नहीं होता।----------23. कामाख्याभारतीय राज्य असम में गुवाहाटी से दो मिल दूर पश्चिम में ‍नीलगिरि पर्वत पर स्थित सिद्धि पीठ को कामाख्या या कामाक्षा पीठ कहते हैं। कालिका पुराण में इसका उल्लेख मिलता है।--24.गुह्म कालिकानेपाल के काठमांडू स्थित पशुपतिनाथ मंदिर से कुछ ही दूर स्थित वागमती नदी के गुह्मेश्वरीघाट पर माता गुह्मेश्वरी का मंदिर है। नेपाल के राजा की कुल देवी माता के दर्शन के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं।------------------------------------------------------------------25.महाकालीकाशी में शक्ति का त्रिकोण है उसके कोनों पर क्रमश: दुर्गाजी (महाकाली), महालक्ष्मी तथा वागीश्वरी (महासरस्वती) विराजमान हैं। काशीक्षेत्र स्थित इसी स्थान को शक्तिपीठ कहा जाता है।-26.कौशिकी देवीभारत के उत्तरांचल राज्य में काषाय पर्वतपर स्थित अल्मोड़ा नगर से आठ मील दूर कौशिकी देवी का स्थान है। दुर्गा सप्तशती के पाँचवें अध्याय में इसका उल्लेख मिलता है।--------------27.सातमात्राओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर से तीन मील पूर्व में नर्मादा के तट पर महत्वपूर्ण 'सातमात्रा' शक्तिपीठ स्‍थित है जिसे सप्तमात्रा भी कहा जाता है। दुर्गा सप्तशती में इसकी उत्पत्ति के बारे में उल्लेख मिलता है।--------------------------------------------------------------------------28.कालकादेहली-शिमला रोड पर कालका नामक जंक्शन है। यहीं पर भगवती कालिका का प्रा‍चीन मंदिर है। दुर्गा सप्तशती में इसका उल्लेख मिलता है।----------------------------------------------------29. नगरकोट की देवीकाँगड़ा पठानकोट-योगीन्द्रनगर लाइन पर एक स्टेशन है। यहाँ भगवती विद्येश्वरी का बहुत ही प्राचीन मंदिर है। इसको नगरकोट की देवी भी कहते हैं।-------------------------------------30. चित्तौड़चित्तौड़ के दुर्ग के अंदर भगवती कालिका का प्राचीन मंदिर है। दुर्ग में तुलजा भवानी तथा अन्नपूर्णा के मंदिर भी हैं।----------------------------------------------------------------------31.भगवती पटेश्वरीभगवती पटेश्वरी मंदिर की स्थापना महाभारत काल में राजा कर्ण द्वारा हुई थी। सम्राट विक्रमादित्य ने इसका जीर्णोद्धार किया था। यह नाथ सम्प्रदाय के साधुओं का स्थान है।-------32.योगमाया-कालिकायहाँ दो शक्तिपीठ माने गए हैं। पहला कुतुबमीनार के पास योगमाया का मंदिर और दूसरा यहाँ से लगभग सात मील पर ओखला नामक ग्राम में कालिका का मंदिर ---------------------३३.. पठानकोटपठानकोट का प्राचीन नाम पथकोट था, क्योंकि यहाँ प्राचीनकाल से ही बड़ी-बड़ी सड़कें थीं। यहीं पर जो कोट अर्थात किला है वहीं पथकोट की देवी (पठानकोट की देवी) का स्थान है। त्रिगर्त पर्वतीय क्षेत्र में इस देवी की आराधना प्राचीनकाल से ही होती आ रही है।----------------------34.ललिता देवीइलाहबाद के कड़ा नामक स्थान पर कड़े की देवी विशेष रूप से प्रसिद्ध है। इसके अलावा संगम तट पर ललिता देवी का प्रसिद्ध शक्तिपीठ है।------------------------------------35.पूर्णागिरिपुण्यागिरि या पूर्णागिरि स्थान अल्मोड़ा जिले के पीलीभीत मार्ग पर टनकपुर से आठ सौ मील पर नेपाल की सरहद पर शारदानदी के किनारे है। आसपास जंगल और बीच में पर्वत पर विराजमान हैं भगवती दुर्गा। इसे शक्तिपीठों में गिना जाता है।--------------------------------------36.माता कुडि़यामद्रास (चेन्नई) नगर के साहूकारपेठ में सुप्रसिद्ध माता कुडि़या का मंदिर है। यहाँ कण्डे की आँच से मीठा चावल पकाकर देवी को भोग लगाया जाता है।---------------------------------37.देवी चामुंडामैसूर की अधिष्ठात्री देवी चामुंडा हैं। मैसूर से लगी विशाल पहाड़ियों पर माता का स्थान है। चामुंडा को यहाँ भेरुण्डा भी कहते हैं। -----------------------------------------------------38.विन्ध्याचलकंस के हाथ से छूटकर जिन्होंने भविष्यवाणी की थी वही श्रीविन्ध्यवासिनी हैं। यहीं पर भगवती ने शुंभ और निशुंभ को मारा था। इस क्षेत्र में शक्ति त्रिकोण है। क्रमश: विन्ध्यवासिनी (महालक्ष्मी), कालीखोह की काली (महाकाली) तथा पर्वत पर की अष्टभुजा (महासरस्वती) विराजमान हैं।--39.तारादेवीयह प्रदेश भी एक प्रसिद्ध शक्ति स्थल है। तारादेवी नामक स्टेशन के पास तारा का प्राचीन स्थान है और कण्डाघाट स्टेशन के पास ही देवी का प्राचीन मंदिर है।

माता के 52 शक्ति पीठ


माता के 52 शक्ति पीठ
देवी भागवत पुराण में 108, कालिकापुराण में छब्बीस, शिवचरित्र में इक्यावन, दुर्गा शप्तसती और तंत्रचूड़ामणि में शक्ति पीठों की संख्या 52 बताई गई है। साधारत: 51 शक्ति पीठ माने जाते हैं। तंत्रचूड़ामणि में लगभग 52 शक्ति पीठों के बारे में बताया गया है। प्रस्तुत है तंत्रचूड़ामणि की

तालिका

।1।हिंगलाजहिंगुला या हिंगलाज शक्तिपीठ जो कराची से 125 किमी उत्तर पूर्व में स्थित है, जहाँ माता का ब्रह्मरंध (सिर) गिरा था। इसकी शक्ति- कोटरी (भैरवी-कोट्टवीशा) है और भैरव को को भीमलोचन कहते है

2शर्कररे (करवीर)पाकिस्तान में कराची के सुक्कर स्टेशन के निकट स्थित है शर्कररे शक्तिपीठ, जहाँ माता की आँख गिरी थी। इसकी शक्ति- महिषासुरमर्दिनी और भैरव को क्रोधिश कहते है

।3।सुगंधा- सुनंदाबांग्लादेश के शिकारपुर में बरिसल से 20 किमी दूर सोंध नदी के किनारे स्थित है माँ सुगंध, जहाँ माता की नासिका गिरी थी। इसकी शक्ति है सुनंदा और भैरव को त्र्यंबक कहते हैं। --------

4-कश्मीर- महामायाभारत के कश्मीर में पहलगाँव के निकट माता का कंठ गिरा था। इसकी शक्ति है महामाया और भैरव को त्रिसंध्येश्वर कहते हैं।----------------------------------५.ज्वालामुखी- भारत के हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा में माता की जीभ गिरी थी, उसे ज्वालाजी स्थान कहते हैं। इसकी शक्ति है सिद्धिदा (अंबिका)सिद्धिदा (अंबिका)भारत और भैरव को उन्मत्त कहते हैं।--------------------------------------------------------------------------6.जालंधर- त्रिपुरमालिनीपंजाब के जालंधर में छावनी स्टेशन के निकट देवी तलाब जहाँ माता का बायाँ वक्ष (स्तन) गिरा था। इसकी शक्ति है त्रिपुरमालिनी और भैरव को भीषण कहते हैं।----------------------------------------------------------------------------7.वैद्यनाथ- जयदुर्गाझारखंड के देवघर में स्थित वैद्यनाथधाम जहाँ माता का हृदय गिरा था। इसकी शक्ति है जय दुर्गा और भैरव को वैद्यनाथ कहते हैं।-------------------------------------------------8.नेपाल- महामायानेपाल में पशुपतिनाथ मंदिर के निकट स्‍थित है गुजरेश्वरी मंदिर जहाँ माता के दोनों घुटने (जानु) गिरे थे। इसकी शक्ति है महशिरा (महामाया) और भैरव को कपाली कहते हैं।---------9.मानस- दाक्षायणीतिब्बत स्थित कैलाश मानसरोवर के मानसा के निकट एक पाषाण शिला पर माता का दायाँ हाथ गिरा था। इसकी शक्ति है दाक्षायनी और भैरव अमर हैं।------------------------10.विरजा- विरजाक्षेत्रभारतीय प्रदेश उड़ीसा के विराज में उत्कल स्थित जगह पर माता की नाभि गिरी थी। इसकी शक्ति है विमला और भैरव को जगन्नाथ कहते हैं।--------------------------------11.गंडकी- गंडकीनेपाल में गंडकी नदी के तट पर पोखरा नामक स्थान पर स्थित मुक्तिनाथ मंदिर, जहाँ माता का मस्तक या गंडस्थल अर्थात कनपटी गिरी थी। इसकी शक्ति है गण्डकी चण्डी और भैरव चक्रपाणि हैं।------------------------------------------------------------------------------12.बहुला- बहुला (चंडिका)भारतीय प्रदेश पश्चिम बंगाल से वर्धमान जिला से 8 किमी दूर कटुआ केतुग्राम के निकट अजेय नदी तट पर स्थित बाहुल स्थान पर माता का बायाँ हाथ गिरा था। इसकी शक्ति है देवी बाहुला और भैरव को भीरुक कहते हैं।-------------------------------------------------13.उज्जयिनी- मांगल्य चंडिकाभारतीय प्रदेश पश्चिम बंगाल में वर्धमान जिले से 16 किमी गुस्कुर स्टेशन से उज्जय‍िनी नामक स्थान पर माता की दायीं कलाई गिरी थी। इसकी शक्ति है मंगल चंद्रिका और भैरव को कपिलांबर कहते हैं।-----------------------------------------------------------------14.त्रिपुरा- त्रिपुर सुंदरीभारतीय राज्य त्रिपुरा के उदरपुर के निकट राधाकिशोरपुर गाँव के माताबाढ़ी पर्वत शिखर पर माता का दायाँ पैर गिरा था। इसकी शक्ति है त्रिपुर सुंदरी और भैरव को त्रिपुरेश कहते हैं।----------------------------------------------------------------------------------------------15.चट्टल - भवानीबांग्लादेश में चिट्टागौंग (चटगाँव) जिला के सीताकुंड स्टेशन के निकट ‍चंद्रनाथ पर्वत शिखर पर छत्राल (चट्टल या चहल) में माता की दायीं भुजा गिरी थी। इसकी शक्ति भवानी है और भैरव को चंद्रशेखर कहते हैं।-----------------------------------------------------------------------16.त्रिस्रोता- भ्रामरीभारतीय राज्य पश्चिम बंगाल के जलपाइगुड़ी के बोडा मंडल के सालबाढ़ी ग्राम स्‍थित त्रिस्रोत स्थान पर माता का बायाँ पैर गिरा था। इसकी शक्ति है भ्रामरी और भैरव को अंबर और भैरवेश्वर कहते हैं।-----------------------------------------------------------------------------17.कामगिरि- कामाख्‍याभारतीय राज्य असम के गुवाहाटी जिले के कामगिरि क्षेत्र में स्‍थित नीलांचल पर्वत के कामाख्या स्थान पर माता का योनि भाग गिरा था। इसकी शक्ति है कामाख्या और भैरव को उमानंद कहते हैं।------------------------------------------------------------------------18.प्रयाग- ललिताभारतीय राज्य उत्तरप्रदेश के इलाहबाद शहर (प्रयाग) के संगम तट पर माता की हाथ की अँगुली गिरी थी। इसकी शक्ति है ललिता और भैरव को भव कहते हैं।------------------------19.जयंती- जयंतीबांग्लादेश के सिल्हैट जिले के जयंतीया परगना के भोरभोग गाँव कालाजोर के खासी पर्वत पर जयंती मंदिर जहाँ माता की बायीं जंघा गिरी थी। इसकी शक्ति है जयंती और भैरव को क्रमदीश्वर कहते हैं।-----------------------------------------------------------------------20.युगाद्या- भूतधात्रीपश्चिम बंगाल के वर्धमान जिले के खीरग्राम स्थित जुगाड्‍या (युगाद्या) स्थान पर माता के दाएँ पैर का अँगूठा गिरा था। इसकी शक्ति है भूतधात्री और भैरव को क्षीर खंडक कहते हैं।-------------------------------------------------------------------------------------------------21.कालीपीठ- कालिकाकोलकाता के कालीघाट में माता के बाएँ पैर का अँगूठा गिरा था। इसकी शक्ति है कालिका और भैरव को नकुशील कहते हैं।--------------------------------------------------22।किरीट- विमला (भुवनेशी)पश्चिम बंगाल के मुर्शीदाबाद जिला के लालबाग कोर्ट रोड स्टेशन के किरीटकोण ग्राम के पास माता का मुकुट गिरा था। इसकी शक्ति है विमला और भैरव को संवर्त्त कहते हैं।------------------------------------------------------------------------------------23.वाराणसी- विशालाक्षीउत्तरप्रदेश के काशी में मणि‍कर्णिक घाट पर माता के कान के मणिजड़ीत कुंडल गिरे थे। इसकी शक्ति है विशालाक्षी‍ मणिकर्णी और भैरव को काल भैरव कहते हैं।
24.कन्याश्रम- सर्वाणीकन्याश्रम में माता का पृष्ठ भाग गिरा था। इसकी शक्ति है सर्वाणी और भैरव को निमिष कहते हैं।-------------------------------------------------------------------------25.कुरुक्षेत्र- सावित्रीहरियाणा के कुरुक्षेत्र में माता की एड़ी (गुल्फ) गिरी थी। इसकी शक्ति है सावित्री और भैरव है स्थाणु।------------------------------------------------------------------------------26.मणिदेविक- गायत्रीअजमेर के निकट पुष्कर के मणिबन्ध स्थान के गायत्री पर्वत पर दो मणिबंध गिरे थे। इसकी शक्ति है गायत्री और भैरव को सर्वानंद कहते हैं।-----------------------------27.श्रीशैल- महालक्ष्मीबांग्लादेश के सिल्हैट जिले के उत्तर-पूर्व में जैनपुर गाँव के पास शैल नामक स्थान पर माता का गला (ग्रीवा) गिरा था। इसकी शक्ति है महालक्ष्मी और भैरव को शम्बरानंद कहते हैं।----------------------------------------------------------------------------------------28.कांची- देवगर्भापश्चिम बंगाल के बीरभुम जिला के बोलारपुर स्टेशन के उत्तर पूर्व स्थित कोपई नदी तट पर कांची नामक स्थान पर माता की अस्थि गिरी थी। इसकी शक्ति है देवगर्भा और भैरव को रुरु कहते हैं।-------------------------------------------------------------------------------------२९.कालमाधव- देवी कालीमध्यप्रदेश के अमरकंटक के कालमाधव स्थित शोन नदी तट के पास माता का बायाँ नितंब गिरा था जहाँ एक गुफा है। इसकी शक्ति है काली और भैरव को असितांग कहते 30.शोणदेश- नर्मदा (शोणाक्षी)मध्यप्रदेश के अमरकंटक स्थित नर्मदा के उद्गम पर शोणदेश स्थान पर माता का दायाँ नितंब गिरा था। इसकी शक्ति है नर्मदा और भैरव को भद्रसेन कहते हैं।--------31.रामगिरि- शिवानीउत्तरप्रदेश के झाँसी-मणिकपुर रेलवे स्टेशन चित्रकूट के पास रामगिरि स्थान पर माता का दायाँ वक्ष गिरा था। इसकी शक्ति है शिवानी और भैरव को चंड कहते हैं।------------32.वृंदावन- उमाउत्तरप्रदेश के मथुरा के निकट वृंदावन के भूतेश्वर स्थान पर माता के गुच्छ और चूड़ामणि गिरे थे। इसकी शक्ति है उमा और भैरव को भूतेश कहते हैं।--------------------------33.शुचि- नारायणीतमिलनाडु के कन्याकुमारी-तिरुवनंतपुरम मार्ग पर शुचितीर्थम शिव मंदिर है, जहाँ पर माता की ऊपरी दंत (ऊर्ध्वदंत) गिरे थे। इसकी शक्ति है नारायणी और भैरव को संहार कहते है 34.पंचसागर- वाराहीपंचसागर (अज्ञात स्थान) में माता की निचले दंत (अधोदंत) गिरे थे। इसकी शक्ति है वराही और भैरव को महारुद्र कहते हैं।-------------------------------------------------35.करतोयातट- अपर्णाबांग्लादेश के शेरपुर बागुरा स्टेशन से 28 किमी दूर भवानीपुर गाँव के पार करतोया तट स्थान पर माता की पायल (तल्प) गिरी थी। इसकी शक्ति है अर्पण और भैरव को वामन कहते हैं।-------------------------------------------------------------------------------36.श्रीपर्वत- श्रीसुंदरीकश्मीर के लद्दाख क्षेत्र के पर्वत पर माता के दाएँ पैर की पायल गिरी थी। दूसरी मान्यता अनुसार आंध्रप्रदेश के कुर्नूल जिले के श्रीशैलम स्थान पर दक्षिण गुल्फ अर्थात दाएँ पैर की एड़ी गिरी थी। इसकी शक्ति है श्रीसुंदरी और भैरव को सुंदरानंद कहते हैं। -------------------------37.विभाष- कपालिनीपश्चिम बंगाल के जिला पूर्वी मेदिनीपुर के पास तामलुक स्थित विभाष स्थान पर माता की बायीं एड़ी गिरी थी। इसकी शक्ति है कपालिनी (भीमरूप) और भैरव को शर्वानंद कहते हैं।--38.प्रभास- चंद्रभागागुजरात के जूनागढ़ जिले में स्थित सोमनाथ मंदिर के निकट वेरावल स्टेशन से 4 किमी प्रभास क्षेत्र में माता का उदर गिरा था। इसकी शक्ति है चंद्रभागा और भैरव को वक्रतुंड कहते हैं।------------------------------------------------------------------------------------39.भैरवपर्वत- अवंतीमध्यप्रदेश के ‍उज्जैन नगर में शिप्रा नदी के तट के पास भैरव पर्वत पर माता के ओष्ठ गिरे थे। इसकी शक्ति है अवंति और भैरव को लम्बकर्ण कहते हैं।---------------------40.जनस्थान- भ्रामरीमहाराष्ट्र के नासिक नगर स्थित गोदावरी नदी घाटी स्थित जनस्थान पर माता की ठोड़ी गिरी थी। इसकी शक्ति है भ्रामरी और भैरव है विकृताक्ष।------------------------------ 41.सर्वशैल स्थानआंध्रप्रदेश के राजामुंद्री क्षेत्र स्थित गोदावरी नदी के तट पर कोटिलिंगेश्वर मंदिर के पास सर्वशैल स्थान पर माता के वाम गंड (गाल) गिरे थे। इसकी शक्ति है रा‍किनी और भैरव को वत्सनाभम कहते हैं'-----------------------------------------------------------------------------42.गोदावरीतीर : यहाँ माता के दक्षिण गंड गिरे थे। इसकी शक्ति है विश्वेश्वरी और भैरव को दंडपाणि कहते हैं।-------------------------------------------------------------------------------43.रत्नावली- कुमारीबंगाल के हुगली जिले के खानाकुल-कृष्णानगर मार्ग पर रत्नावली स्थित रत्नाकर नदी के तट पर माता का दायाँ स्कंध गिरा था। इसकी शक्ति है कुमारी और भैरव को शिव कहते हैं।-44.मिथिला- उमा (महादेवी)भारत-नेपाल सीमा पर जनकपुर रेलवे स्टेशन के निकट मिथिला में माता का बायाँ स्कंध गिरा था। इसकी शक्ति है उमा और भैरव को महोदर कहते हैं।-------------------45.नलहाटी- कालिका तारापीठपश्चिम बंगाल के वीरभूम जिले के नलहाटि स्टेशन के निकट नलहाटी में माता के पैर की हड्डी गिरी थी। इसकी शक्ति है कालिका देवी और भैरव को योगेश कहते हैं।-46.कर्णाट- जयदुर्गाकर्नाट (अज्ञात स्थान) में माता के दोनों कान गिरे थे। इसकी शक्ति है जयदुर्गा और भैरव को अभिरु कहते हैं।----------------------------------------------------------------47.वक्रेश्वर- महिषमर्दिनीपश्चिम बंगाल के वीरभूम जिले के दुबराजपुर स्टेशन से सात किमी दूर वक्रेश्वर में पापहर नदी के तट पर माता का भ्रूमध्य (मन:) गिरा था। इसकी शक्ति है महिषमर्दिनी और भैरव को वक्रनाथ कहते हैं।-----------------------------------------------------------------------48.यशोर- यशोरेश्वरीबांग्लादेश के खुलना जिला के ईश्वरीपुर के यशोर स्थान पर माता के हाथ और पैर गिरे (पाणिपद्म) थे। इसकी शक्ति है यशोरेश्वरी और भैरव को चण्ड कहते हैं।----------------49.अट्टाहास- फुल्लरापश्चिम बंगला के लाभपुर स्टेशन से दो किमी दूर अट्टहास स्थान पर माता के ओष्ठ गिरे थे। इसकी शक्ति है फुल्लरा और भैरव को विश्वेश कहते हैं।------------------------50.नंदीपूर- नंदिनीपश्चिम बंगाल के वीरभूम जिले के सैंथिया रेलवे स्टेशन नंदीपुर स्थित चारदीवारी में बरगद के वृक्ष के समीप माता का गले का हार गिरा था। इसकी शक्ति है नंदिनी और भैरव को नंदिकेश्वर कहते हैं।------------------------------------------------------------------------51.लंका- इंद्राक्षीश्रीलंका में संभवत: त्रिंकोमाली में माता की पायल गिरी थी (त्रिंकोमाली में प्रसिद्ध त्रिकोणेश्वर मंदिर के निकट)। इसकी शक्ति है इंद्राक्षी और भैरव को राक्षसेश्वर कहते हैं।---------52.विराट- अंबिकाविराट (अज्ञात स्थान) में पैर की अँगुली गिरी थी। इसकी शक्ति है अंबिका और भैरव को अमृत कहते हैं।नोट : इसके अलावा पटना-गया के इलाके में कहीं मगध शक्तिपीठ माना जाता है....53. मगध- सर्वानन्दकरीमगध में दाएँ पैर की जंघा गिरी थी। इसकी शक्ति है सर्वानंदकरी और भैरव को व्योमकेश कहते ----------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------पंकज तिवारी सहज

: माँ दुर्गाजी की पहली शक्ति

शैलपुत्री
वन्दे वांछितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्‌।
वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्‌॥
माँ दुर्गा पहले स्वरूप में 'शैलपुत्री' के नाम से जानी जाती हैं। ये ही नवदुर्गाओं में प्रथम दुर्गा हैं। पर्वतराज हिमालय के घर पुत्री रूप में उत्पन्न होने के कारण इनका नाम 'शैलपुत्री' पड़ा। नवरात्र-पूजन में प्रथम दिवस इन्हीं की पूजा और उपासना की जाती है। इस प्रथम दिन की उपासना में योगी अपने मन को 'मूलाधार' चक्र में स्थित करते हैं। यहीं से उनकी योग साधना का प्रारंभ होता है।वृषभ-स्थिता इन माताजी के दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएँ हाथ में कमल-पुष्प सुशोभित है। अपने पूर्व जन्म में ये प्रजापति दक्ष की कन्या के रूप में उत्पन्न हुई थीं। तब इनका नाम 'सती' था। इनका विवाह भगवान शंकरजी से हुआ था।एक बार प्रजापति दक्ष ने एक बहुत बड़ा यज्ञ किया। इसमें उन्होंने सारे देवताओं को अपना-अपना यज्ञ-भाग प्राप्त करने के लिए निमंत्रित किया, किन्तु शंकरजी को उन्होंने इस यज्ञ में निमंत्रित नहीं किया। सती ने जब सुना कि उनके पिता एक अत्यंत विशाल यज्ञ का अनुष्ठान कर रहे हैं, तब वहाँ जाने के लिए उनका मन विकल हो उठा।अपनी यह इच्छा उन्होंने शंकरजी को बताई। सारी बातों पर विचार करने के बाद उन्होंने कहा- प्रजापति दक्ष किसी कारणवश हमसे रुष्ट हैं। अपने यज्ञ में उन्होंने सारे देवताओं को निमंत्रित किया है। उनके यज्ञ-भाग भी उन्हें समर्पित किए हैं, किन्तु हमें जान-बूझकर नहीं बुलाया है। कोई सूचना तक नहीं भेजी है। ऐसी स्थिति में तुम्हारा वहाँ जाना किसी प्रकार भी श्रेयस्कर नहीं होगा।'शंकरजी के इस उपदेश से सती का प्रबोध नहीं हुआ। पिता का यज्ञ देखने, वहाँ जाकर माता और बहनों से मिलने की उनकी व्यग्रता किसी प्रकार भी कम न हो सकी। उनका प्रबल आग्रह देखकर भगवान शंकरजी ने उन्हें वहाँ जाने की अनुमति दे दी।सती ने पिता के घर पहुँचकर देखा कि कोई भी उनसे आदर और प्रेम के साथ बातचीत नहीं कर रहा है। सारे लोग मुँह फेरे हुए हैं। केवल उनकी माता ने स्नेह से उन्हें गले लगाया। बहनों की बातों में व्यंग्य और उपहास के भाव भरे हुए थे।परिजनों के इस व्यवहार से उनके मन को बहुत क्लेश पहुँचा। उन्होंने यह भी देखा कि वहाँ चतुर्दिक भगवान शंकरजी के प्रति तिरस्कार का भाव भरा हुआ है। दक्ष ने उनके प्रति कुछ अपमानजनक वचन भी कहे। यह सब देखकर सती का हृदय क्षोभ, ग्लानि और क्रोध से संतप्त हो उठा। उन्होंने सोचा भगवान शंकरजी की बात न मान, यहाँ आकर मैंने बहुत बड़ी गलती की है।वे अपने पति भगवान शंकर के इस अपमान को सह न सकीं। उन्होंने अपने उस रूप को तत्क्षण वहीं योगाग्नि द्वारा जलाकर भस्म कर दिया। वज्रपात के समान इस दारुण-दुःखद घटना को सुनकर शंकरजी ने क्रुद्ध होअपने गणों को भेजकर दक्ष के उस यज्ञ का पूर्णतः विध्वंस करा दिया।सती ने योगाग्नि द्वारा अपने शरीर को भस्म कर अगले जन्म में शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लिया। इस बार वे 'शैलपुत्री' नाम से विख्यात हुर्ईं। पार्वती, हैमवती भी उन्हीं के नाम हैं। उपनिषद् की एक कथा के अनुसार इन्हीं ने हैमवती स्वरूप से देवताओं का गर्व-भंजन किया था।'शैलपुत्री' देवी का विवाह भी शंकरजी से ही हुआ। पूर्वजन्म की भाँति इस जन्म में भी वे शिवजी की ही अर्द्धांगिनी बनीं। नवदुर्गाओं में प्रथम शैलपुत्री दुर्गा का महत्व और शक्तियाँ अनंत हैं।-------------------------------------------------------------------------------पंकज तिवारी सहज

माँ दुर्गाजी की दूसरी शक्ति ब्रह्मचारिणी


ब्रह्मचारिणी
प्रत्येक सर्वसाधारण के लिए आराधना योग्य यह श्लोक सरल और स्पष्ट है। माँ जगदम्बे की भक्ति पाने के लिए इसे कंठस्थ कर नवरात्रि में द्वितीय दिन इसका जाप करना चाहिए।या देवी सर्वभू‍तेषु माँ ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता।नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।अर्थ : हे माँ! सर्वत्र विराजमान और ब्रह्मचारिणी के रूप में प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है। या मैं आपको बारंबार प्रणाम करता हूँ।नवरात्र पर्व के दूसरे दिन माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा-अर्चना की जाती है। साधक इस दिन अपने मन को माँ के चरणों में लगाते हैं। ब्रह्म का अर्थ है तपस्या और चारिणी यानी आचरण करने वाली। इस प्रकार ब्रह्मचारिणी का अर्थ हुआ तप का आचरण करने वाली। इनके दाहिने हाथ में जप की माला एवं बाएँ हाथ में कमण्डल रहता है।
प्रत्येक सर्वसाधारण के लिए आराधना योग्य यह श्लोक सरल और स्पष्ट है। माँ जगदम्बे की भक्ति पाने के लिए नवरात्रि में द्वितीय दिन इसका जाप करना चाहिए। या देवी सर्वभू‍तेषु माँ ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
इस दिन साधक कुंडलिनी शक्ति को जागृत करने के लिए भी साधना करते हैं। जिससे उनका जीवन सफल हो सके और अपने सामने आने वाली किसी भी प्रकार की बाधा का सामना आसानी से कर सकें।माँ दुर्गाजी का यह दूसरा स्वरूप भक्तों और सिद्धों को अनन्तफल देने वाला है। इनकी उपासना से मनुष्य में तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार, संयम की वृद्धि होती है। जीवन के कठिन संघर्षों में भी उसका मन कर्तव्य-पथ से विचलित नहीं होता। माँ ब्रह्मचारिणी देवी की कृपा से उसे सर्वत्र सिद्धि और विजय की प्राप्ति होती है। दुर्गा पूजा के दूसरे दिन इन्हीं के स्वरूप की उपासना की जाती है। इस दिन साधक का मन ‘स्वाधिष्ठान ’चक्र में शिथिल होता है। इस चक्र में अवस्थित मनवाला योगी उनकी कृपा और भक्ति प्राप्त करता है।इस दिन ऐसी कन्याओं का पूजन किया जाता है कि जिनका विवाह तय हो गया है लेकिन अभी शादी नहीं हुई है। इन्हें अपने घर बुलाकर पूजन के पश्चात भोजन कराकर वस्त्र, पात्र आदि भेंट किए जाते हैं।--------------------------------------------------------------------पंकज तिवारी सहज

माँ दुर्गाजी की तीसरी शक्ति 'चंद्रघंटा'


॥ चंद्रघंटा ॥

पिण्डजप्रवरारूढा चण्डकोपास्त्रकैर्युता।
प्रसादं तनुते मह्यं चंद्रघंटेति विश्रुता॥

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ चंद्रघंटा रूपेण संस्थिता।नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।नवरात्रि उपासना में तीसरे दिन की पूजा का अत्यधिक महत्व है और इस दिन इन्हीं के विग्रह का पूजन-आराधन किया जाता है। इस दिन साधक का मन 'मणिपूर' चक्र में प्रविष्ट होता है।माँ चंद्रघंटा की कृपा से अलौकिक वस्तुओं के दर्शन होते हैं, दिव्य सुगंधियों का अनुभव होता है तथा विविध प्रकार की दिव्य ध्वनियाँ सुनाई देती हैं। ये क्षण साधक के लिए अत्यंत सावधान रहने के होते हैं।माँ का यह स्वरूप परम शांतिदायक और कल्याणकारी है। इनके मस्तक में घंटे का आकार का अर्धचंद्र है, इसी कारण से इन्हें चंद्रघंटा देवी कहा जाता है। इनके शरीर का रंग स्वर्ण के समान चमकीला है। इनके दस हाथ हैं। इनके दसों हाथों में खड्ग आदि शस्त्र तथा बाण आदि अस्त्र विभूषित हैं। इनका वाहन सिंह है। इनकी मुद्रा युद्ध के लिए उद्यत रहने की होती है।मां चंद्रघंटा की कृपा से साधक के समस्त पाप और बाधाएँ विनष्ट हो जाती हैं। इनकी आराधना सद्यः फलदायी है। माँ भक्तों के कष्ट का निवारण शीघ्र ही कर देती हैं। इनका उपासक सिंह की तरह पराक्रमी और निर्भय हो जाता है। इनके घंटे की ध्वनि सदा अपने भक्तों को प्रेतबाधा से रक्षा करती है। इनका ध्यान करते ही शरणागत की रक्षा के लिए इस घंटे की ध्वनि निनादित हो उठती है।
माँ दुर्गाजी की तीसरी शक्ति का नाम 'चंद्रघंटा' है। नवरात्रि उपासना में तीसरे दिन की पूजा का अत्यधिक महत्व है और इस दिन इन्हीं के विग्रह का पूजन-आराधन किया जाता है। इस दिन साधक का मन 'मणिपूर' चक्र में प्रविष्ट होता है।
माँ का स्वरूप अत्यंत सौम्यता एवं शांति से परिपूर्ण रहता है। इनकी आराधना से वीरता-निर्भयता के साथ ही सौम्यता एवं विनम्रता का विकास होकर मुख, नेत्र तथा संपूर्ण काया में कांति-गुण की वृद्धि होती है। स्वर में दिव्य, अलौकिक माधुर्य का समावेश हो जाता है। माँ चंद्रघंटा के भक्त और उपासक जहाँ भी जाते हैं लोग उन्हें देखकर शांति और सुख का अनुभव करते हैं।माँ के आराधक के शरीर से दिव्य प्रकाशयुक्त परमाणुओं का अदृश्य विकिरण होता रहता है। यह दिव्य क्रिया असाधारण चक्षुओं से दिखाई नहीं देती, किन्तु साधक और उसके संपर्क में आने वाले लोग इस बात का अनुभव भली-भाँति करते रहते हैं।हमें चाहिए कि अपने मन, वचन, कर्म एवं काया को विहित विधि-विधान के अनुसार पूर्णतः परिशुद्ध एवं पवित्र करके माँ चंद्रघंटा के शरणागत होकर उनकी उपासना-आराधना में तत्पर हों। उनकी उपासना से हम समस्त सांसारिक कष्टों से विमुक्त होकर सहज ही परमपद के अधिकारी बन सकते हैं।हमें निरंतर उनके पवित्र विग्रह को ध्यान में रखते हुए साधना की ओर अग्रसर होने का प्रयत्न करना चाहिए। उनका ध्यान हमारे इहलोक और परलोक दोनों के लिए परम कल्याणकारी और सद्गति देने वाला है।प्रत्येक सर्वसाधारण के लिए आराधना योग्य यह श्लोक सरल और स्पष्ट है। माँ जगदम्बे की भक्ति पाने के लिए इसे कंठस्थ कर नवरात्रि में तृतीय दिन इसका जाप करना चाहिए
देवी सर्वभू‍तेषु माँ चंद्रघंटा रूपेण संस्थिता।नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
।।अर्थ : हे माँ! सर्वत्र विराजमान और चंद्रघंटा के रूप में प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है। या मैं आपको बारंबार प्रणाम करता हूँ। हे माँ, मुझे सब पापों से मुक्ति प्रदान करें।इस दिन सांवली रंग की ऐसी विवाहित महिला जिसके चेहरे पर तेज हो, को बुलाकर उनका पूजन करना चाहिए। भोजन में दही और हलवा खिलाएँ। भेंट में कलश और मंदिर की घंटी भेंट करना चाहिए।------------------------------------------------------------------------------पंकज तिवारी सहज

माँ दुर्गाजी की चतुर्थ शक्ति कुष्मांडा

।। माँ कूष्मांडा देवी ।।
चतुर्थी के दिन माँ कूष्मांडा की आराधना की जाती है। इनकी उपासना से सिद्धियों में निधियों को प्राप्त कर समस्त रोग-शोक दूर होकर आयु-यश में वृद्धि होती है। प्रत्येक सर्वसाधारण के लिए आराधना योग्य यह श्लोक सरल और स्पष्ट है। माँ जगदम्बे की भक्ति पाने के लिए इसे कंठस्थ कर नवरात्रि में चतुर्थ दिन इसका जाप करना चाहिए।
या देवी सर्वभू‍तेषु माँ कूष्माण्डा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
अर्थ : हे माँ! सर्वत्र विराजमान और कूष्माण्डा के रूप में प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है। या मैं आपको बारंबार प्रणाम करता हूँ। हे माँ, मुझे सब पापों से मुक्ति प्रदान करें।अपनी मंद, हल्की हँसी द्वारा अंड अर्थात ब्रह्मांड को उत्पन्न करने के कारण इन्हें कूष्माण्डा देवी के रूप में पूजा जाता है। संस्कृत भाषा में कूष्माण्डा को कुम्हड़ कहते हैं। बलियों में कुम्हड़े की बलि इन्हें सर्वाधिक प्रिय है। इस कारण से भी माँ कूष्माण्डा कहलाती हैं।
चतुर्थी के दिन माँ कूष्मांडा की आराधना की जाती है। इनकी उपासना से सिद्धियों में निधियों को प्राप्त कर समस्त रोग-शोक दूर होकर आयु-यश में वृद्धि होती है। प्रत्येक सर्वसाधारण के लिए आराधना योग्य यह श्लोक सरल और स्पष्ट है।
नवरात्र-पूजन के चौथे दिन कूष्माण्डा देवी के स्वरूप की ही उपासना की जाती है। इस दिन साधक का मन 'अदाहत' चक्र में अवस्थित होता है। अतः इस दिन उसे अत्यंत पवित्र और अचंचल मन से कूष्माण्डा देवी के स्वरूप को ध्यान में रखकर पूजा-उपासना के कार्य में लगना चाहिए।जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था, तब इन्हीं देवी ने ब्रह्मांड की रचना की थी। अतः ये ही सृष्टि की आदि-स्वरूपा, आदिशक्ति हैं। इनका निवास सूर्यमंडल के भीतर के लोक में है। वहाँ निवास कर सकने की क्षमता और शक्ति केवल इन्हीं में है। इनके शरीर की कांति और प्रभा भी सूर्य के समान ही दैदीप्यमान हैं।इनके तेज और प्रकाश से दसों दिशाएँ प्रकाशित हो रही हैं। ब्रह्मांड की सभी वस्तुओं और प्राणियों में अवस्थित तेज इन्हीं की छाया है। माँ की आठ भुजाएँ हैं। अतः ये अष्टभुजा देवी के नाम से भी विख्यात हैं। इनके सात हाथों में क्रमशः कमंडल, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र तथा गदा है। आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जपमाला है। इनका वाहन सिंह है।माँ कूष्माण्डा की उपासना से भक्तों के समस्त रोग-शोक मिट जाते हैं। इनकी भक्ति से आयु, यश, बल और आरोग्य की वृद्धि होती है। माँ कूष्माण्डा अत्यल्प सेवा और भक्ति से प्रसन्न होने वाली हैं। यदि मनुष्य सच्चे हृदय से इनका शरणागत बन जाए तो फिर उसे अत्यन्त सुगमता से परम पद की प्राप्ति हो सकती है।विधि-विधान से माँ के भक्ति-मार्ग पर कुछ ही कदम आगे बढ़ने पर भक्त साधक को उनकी कृपा का सूक्ष्म अनुभव होने लगता है। यह दुःख स्वरूप संसार उसके लिए अत्यंत सुखद और सुगम बन जाता है। माँ की उपासना मनुष्य को सहज भाव से भवसागर से पार उतारने के लिए सर्वाधिक सुगम और श्रेयस्कर मार्ग है।माँ कूष्माण्डा की उपासना मनुष्य को आधियों-व्याधियों से सर्वथा विमुक्त करके उसे सुख, समृद्धि और उन्नति की ओर ले जाने वाली है। अतः अपनी लौकिक, पारलौकिक उन्नति चाहने वालों को इनकी उपासना में सदैव तत्पर रहना चाहिए।इस दिन जहाँ तक संभव हो बड़े माथे वाली तेजस्वी विवाहित महिला का पूजन करना चाहिए। उन्हें भोजन में दही, हलवा खिलाना श्रेयस्कर है। इसके बाद फल, सूखे मेवे और सौभाग्य का सामान भेंट करना चाहिए। जिससे माताजी प्रसन्न होती हैं। और मनवांछित फलों की प्राप्ति होती है।----------------------------------------------------------------------------------पंकज तिवारी सहज

माँ दुर्गाजी की पांचवी शक्ति स्कंदमाता


।।स्कंदमाता की उपासना
नवरात्रि का पाँचवाँ दिन स्कंदमाता की उपासना का दिन होता है। मोक्ष के द्वार खोलने वाली माता परम सुखदायी हैं। माँ अपने भक्तों की समस्त इच्छाओं की पूर्ति करती हैं। प्रत्येक सर्वसाधारण के लिए आराधना योग्य यह श्लोक सरल और स्पष्ट है। माँ जगदम्बे की भक्ति पाने के लिए इसे कंठस्थ कर नवरात्रि में पाँचवें दिन इसका जाप करना चाहिए।
या देवी सर्वभू‍तेषु माँ स्कंदमाता रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
अर्थ : हे माँ! सर्वत्र विराजमान और स्कंदमाता के रूप में प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है। या मैं आपको बारंबार प्रणाम करता हूँ। हे माँ, मुझे सब पापों से मुक्ति प्रदान करें। इस दिन साधक का मन 'विशुद्ध' चक्र में अवस्थित होता है। इनके विग्रह में भगवान स्कंदजी बालरूप में इनकी गोद में बैठे होते हैं।भगवान स्कंद 'कुमार कार्तिकेय' नाम से भी जाने जाते हैं। ये प्रसिद्ध देवासुर संग्राम में देवताओं के सेनापति बने थे। पुराणों में इन्हें कुमार और शक्ति कहकर इनकी महिमा का वर्णन किया गया है। इन्हीं भगवान स्कंद की माता होने के कारण माँ दुर्गाजी के इस स्वरूप को स्कंदमाता के नाम से जाना जाता है।
नवरात्रि का पाँचवाँ दिन स्कंदमाता की उपासना का दिन होता है। मोक्ष के द्वार खोलने वाली माता परम सुखदायी हैं। माँ अपने भक्तों की समस्त इच्छाओं की पूर्ति करती हैं। प्रत्येक सर्वसाधारण के लिए आराधना योग्य यह श्लोक सरल और स्पष्ट है।
स्कंदमाता की चार भुजाएँ हैं। इनके दाहिनी तरफ की नीचे वाली भुजा, जो ऊपर की ओर उठी हुई है, उसमें कमल पुष्प है। बाईं तरफ की ऊपर वाली भुजा में वरमुद्रा में तथा नीचे वाली भुजा जो ऊपर की ओर उठी है उसमें भी कमल पुष्प ली हुई हैं। इनका वर्ण पूर्णतः शुभ्र है। ये कमल के आसन पर विराजमान रहती हैं। इसी कारण इन्हें पद्मासना देवी भी कहा जाता है। सिंह भी इनका वाहन है।नवरात्रि-पूजन के पाँचवें दिन का शास्त्रों में पुष्कल महत्व बताया गया है। इस चक्र में अवस्थित मन वाले साधक की समस्त बाह्य क्रियाओं एवं चित्तवृत्तियों का लोप हो जाता है। वह विशुद्ध चैतन्य स्वरूप की ओर अग्रसर हो रहा होता है।साधक का मन समस्त लौकिक, सांसारिक, मायिक बंधनों से विमुक्त होकर पद्मासना माँ स्कंदमाता के स्वरूप में पूर्णतः तल्लीन होता है। इस समय साधक को पूर्ण सावधानी के साथ उपासना की ओर अग्रसर होना चाहिए। उसे अपनी समस्त ध्यान-वृत्तियों को एकाग्र रखते हुए साधना के पथ पर आगे बढ़ना चाहिए।माँ स्कंदमाता की उपासना से भक्त की समस्त इच्छाएँ पूर्ण हो जाती हैं। इस मृत्युलोक में ही उसे परम शांति और सुख का अनुभव होने लगता है। उसके लिए मोक्ष का द्वार स्वमेव सुलभ हो जाता है। स्कंदमाता की उपासना से बालरूप स्कंद भगवान की उपासना भी स्वमेव हो जाती है। यह विशेषता केवल इन्हीं को प्राप्त है, अतः साधक को स्कंदमाता की उपासना की ओर विशेष ध्यान देना चाहिए।सूर्यमंडल की अधिष्ठात्री देवी होने के कारण इनका उपासक अलौकिक तेज एवं कांति से संपन्न हो जाता है। एक अलौकिक प्रभामंडल अदृश्य भाव से सदैव उसके चतुर्दिक्‌ परिव्याप्त रहता है। यह प्रभामंडल प्रतिक्षण उसके योगक्षेम का निर्वहन करता रहता है।हमें एकाग्रभाव से मन को पवित्र रखकर माँ की शरण में आने का प्रयत्न करना चाहिए। इस घोर भवसागर के दुःखों से मुक्ति पाकर मोक्ष का मार्ग सुलभ बनाने का इससे उत्तम उपाय दूसरा नहीं है।-------------------------------------पंकज तिवारी सहज

माँ दुर्गाजी की छठी शक्ति कात्यायनी


।।कात्यायनी।।

नवरात्रि का छठा दिन माँ कात्यायनी की उपासना का दिन होता है। इनके पूजन से अद्भुत शक्ति का संचार होता है व दुश्मनों का संहार करने में ये सक्षम बनाती हैं। इनका ध्यान गोधुली बेला में करना होता है। प्रत्येक सर्वसाधारण के लिए आराधना योग्य यह श्लोक सरल और स्पष्ट है। माँ जगदम्बे की भक्ति पाने के लिए इसे कंठस्थ कर नवरात्रि में छठे दिन इसका जाप करना
या देवी सर्वभू‍तेषु माँ कात्यायनी रूपेण संस्थिता।नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
अर्थ : हे माँ! सर्वत्र विराजमान और कात्यायनी के रूप में प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है। या मैं आपको बारंबार प्रणाम करता हूँ। हे माँ, मुझे दुश्मनों का संहार करने की शक्ति प्रदान कर।माँ दुर्गा के छठे स्वरूप का नाम कात्यायनी है। उस दिन साधक का मन 'आज्ञा' चक्र में स्थित होता है। योगसाधना में इस आज्ञा चक्र का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। इस चक्र में स्थित मन वाला साधक माँ कात्यायनी के चरणों में अपना सर्वस्व निवेदित कर देता है। परिपूर्ण आत्मदान करने वाले ऐसे भक्तों को सहज भाव से माँ के दर्शन प्राप्त हो जाते हैं।माँ का नाम कात्यायनी कैसे पड़ा इसकी भी एक कथा है- कत नामक एक प्रसिद्ध महर्षि थे। उनके पुत्र ऋषि कात्य हुए। इन्हीं कात्य के गोत्र में विश्वप्रसिद्ध महर्षि कात्यायन उत्पन्न हुए थे। इन्होंने भगवती पराम्बा की उपासना करते हुए बहुत वर्षों तक बड़ी कठिन तपस्या की थी। उनकी इच्छा थी माँ भगवती उनके घर पुत्री के रूप में जन्म लें। माँ भगवती ने उनकी यह प्रार्थना स्वीकार कर ली।
माँ दुर्गा के छठे स्वरूप का नाम कात्यायनी है। उस दिन साधक का मन 'आज्ञा' चक्र में स्थित होता है। योगसाधना में इस आज्ञा चक्र का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। इस चक्र में स्थित मन वाला साधक माँ कात्यायनी के चरणों में अपना सर्वस्व निवेदित कर देता है।
कुछ समय पश्चात जब दानव महिषासुर का अत्याचार पृथ्वी पर बढ़ गया तब भगवान ब्रह्मा, विष्णु, महेश तीनों ने अपने-अपने तेज का अंश देकर महिषासुर के विनाश के लिए एक देवी को उत्पन्न किया। महर्षि कात्यायन ने सर्वप्रथम इनकी पूजा की। इसी कारण से यह कात्यायनी कहलाईं।ऐसी भी कथा मिलती है कि ये महर्षि कात्यायन के वहाँ पुत्री रूप में उत्पन्न हुई थीं। आश्विन कृष्ण चतुर्दशी को जन्म लेकर शुक्त सप्तमी, अष्टमी तथा नवमी तक तीन दिन इन्होंने कात्यायन ऋषि की पूजा ग्रहण कर दशमी को महिषासुर का वध किया था।माँ कात्यायनी अमोघ फलदायिनी हैं। भगवान कृष्ण को पतिरूप में पाने के लिए ब्रज की गोपियों ने इन्हीं की पूजा कालिन्दी-यमुना के तट पर की थी। ये ब्रजमंडल की अधिष्ठात्री देवी के रूप में प्रतिष्ठित हैं।माँ कात्यायनी का स्वरूप अत्यंत चमकीला और भास्वर है। इनकी चार भुजाएँ हैं। माताजी का दाहिनी तरफ का ऊपरवाला हाथ अभयमुद्रा में तथा नीचे वाला वरमुद्रा में है। बाईं तरफ के ऊपरवाले हाथ में तलवार और नीचे वाले हाथ में कमल-पुष्प सुशोभित है। इनका वाहन सिंह है।माँ कात्यायनी की भक्ति और उपासना द्वारा मनुष्य को बड़ी सरलता से अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष चारों फलों की प्राप्ति हो जाती है। वह इस लोक में स्थित रहकर भी अलौकिक तेज और प्रभाव से युक्त हो जाता है।माँ को जो सच्चे मन से याद करता है उसके रोग, शोक, संताप, भय आदि सर्वथा विनष्ट हो जाते हैं। जन्म-जन्मांतर के पापों को विनष्ट करने के लिए माँ की शरणागत होकर उनकी पूजा-उपासना के लिए तत्पर होना चाहिए।--------------------------------------------------------------------पंकज तिवारी सहज

माँ दुर्गाजी की सातवीं शक्ति कालरात्रि


।।कालरात्रि।।

माँ दुर्गाजी की सातवीं शक्ति कालरात्रि के नाम से जानी जाती हैं। दुर्गापूजा के सातवें दिन माँ कालरात्रि की उपासना का विधान है। इस दिन साधक का मन 'सहस्रार' चक्र में स्थित रहता है। इसके लिए ब्रह्मांड की समस्त सिद्धियों का द्वार खुलने लगता है।सहस्रार चक्र में स्थित साधक का मन पूर्णतः माँ कालरात्रि के स्वरूप में अवस्थित रहता है। उनके साक्षात्कार से मिलने वाले पुण्य का वह भागी हो जाता है। उसके समस्त पापों-विघ्नों का नाश हो जाता है। उसे अक्षय पुण्य-लोकों की प्राप्ति होती है।इनके शरीर का रंग घने अंधकार की तरह एकदम काला है। सिर के बाल बिखरे हुए हैं। गले में विद्युत की तरह चमकने वाली माला है। इनके तीन नेत्र हैं। ये तीनों नेत्र ब्रह्मांड के सदृश गोल हैं। इनसे विद्युत के समान चमकीली किरणें निःसृत होती रहती हैं।माँ की नासिका के श्वास-प्रश्वास से अग्नि की भयंकर ज्वालाएँ निकलती रहती हैं। इनका वाहन गर्दभ (गदहा) है। ये ऊपर उठे हुए दाहिने हाथ की वरमुद्रा से सभी को वर प्रदान करती हैं। दाहिनी तरफ का नीचे वाला हाथ अभयमुद्रा में है। बाईं तरफ के ऊपर वाले हाथ में लोहे का काँटा तथा नीचे वाले हाथ में खड्ग (कटार) है।
माँ दुर्गाजी की सातवीं शक्ति कालरात्रि के नाम से जानी जाती हैं। दुर्गापूजा के सातवें दिन माँ कालरात्रि की उपासना का विधान है। इस दिन साधक का मन 'सहस्रार' चक्र में स्थित रहता है। इसके लिए ब्रह्मांड की समस्त सिद्धियों का द्वार खुलने लगता है।
माँ कालरात्रि का स्वरूप देखने में अत्यंत भयानक है, लेकिन ये सदैव शुभ फल ही देने वाली हैं। इसी कारण इनका एक नाम 'शुभंकारी' भी है। अतः इनसे भक्तों को किसी प्रकार भी भयभीत अथवा आतंकित होने की आवश्यकता नहीं है।माँ कालरात्रि दुष्टों का विनाश करने वाली हैं। दानव, दैत्य, राक्षस, भूत, प्रेत आदि इनके स्मरण मात्र से ही भयभीत होकर भाग जाते हैं। ये ग्रह-बाधाओं को भी दूर करने वाली हैं। इनके उपासकों को अग्नि-भय, जल-भय, जंतु-भय, शत्रु-भय, रात्रि-भय आदि कभी नहीं होते। इनकी कृपा से वह सर्वथा भय-मुक्त हो जाता है।माँ कालरात्रि के स्वरूप-विग्रह को अपने हृदय में अवस्थित करके मनुष्य को एकनिष्ठ भाव से उपासना करनी चाहिए। यम, नियम, संयम का उसे पूर्ण पालन करना चाहिए। मन, वचन, काया की पवित्रता रखनी चाहिए। वे शुभंकारी देवी हैं। उनकी उपासना से होने वाले शुभों की गणना नहीं की जा सकती। हमें निरंतर उनका स्मरण, ध्यान और पूजा करना चाहिए।नवरात्रि की सप्तमी के दिन माँ कालरात्रि की आराधना का विधान है। इनकी पूजा-अर्चना करने से सभी पापों से मुक्ति मिलती है व दुश्मनों का नाश होता है, तेज बढ़ता है। प्रत्येक सर्वसाधारण के लिए आराधना योग्य यह श्लोक सरल और स्पष्ट है। माँ जगदम्बे की भक्ति पाने के लिए इसे कंठस्थ कर नवरात्रि में सातवें दिन इसका जाप करना चाहिए।
या देवी सर्वभू‍तेषु माँ कालरात्रि रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
अर्थ : हे माँ! सर्वत्र विराजमान और कालरात्रि के रूप में प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है। या मैं आपको बारंबार प्रणाम करता हूँ। हे माँ, मुझे पाप से मुक्ति प्रदान कर।
पंकज तिवारी सहज

माँ दुर्गाजी की आठवीं शक्ति महागौरी


॥॥ महागौरी

श्वेते वृषे समारूढा श्वेताम्बरधरा शुचिः।
महागौरी शुभं दद्यान्महादेवप्रमोददा॥

माँ दुर्गाजी की आठवीं शक्ति का नाम महागौरी है। दुर्गापूजा के आठवें दिन महागौरी की उपासना का विधान है। इनकी शक्ति अमोघ और सद्यः फलदायिनी है। इनकी उपासना से भक्तों को सभी कल्मष धुल जाते हैं, पूर्वसंचित पाप भी विनष्ट हो जाते हैं। भविष्य में पाप-संताप, दैन्य-दुःख उसके पास कभी नहीं जाते। वह सभी प्रकार से पवित्र और अक्षय पुण्यों का अधिकारी हो जाता है।इनका वर्ण पूर्णतः गौर है। इस गौरता की उपमा शंख, चंद्र और कुंद के फूल से दी गई है। इनकी आयु आठ वर्ष की मानी गई है- 'अष्टवर्षा भवेद् गौरी।' इनके समस्त वस्त्र एवं आभूषण आदि भी श्वेत हैं।महागौरी की चार भुजाएँ हैं। इनका वाहन वृषभ है। इनके ऊपर के दाहिने हाथ में अभय मुद्रा और नीचे वाले दाहिने हाथ में त्रिशूल है। ऊपरवाले बाएँ हाथ में डमरू और नीचे के बाएँ हाथ में वर-मुद्रा हैं। इनकी मुद्रा अत्यंत शांत है।अपने पार्वती रूप में इन्होंने भगवान शिव को पति-रूप में प्राप्त करने के लिए बड़ी कठोर तपस्या की थी। इनकी प्रतिज्ञा थी कि 'व्रियेऽहं वरदं शम्भुं नान्यं देवं महेश्वरात्‌।' (नारद पांचरात्र)। गोस्वामी तुलसीदासजी के अनुसार भी इन्होंने भगवान शिव के वरण के लिए कठोर संकल्प लिया था-
जन्म कोटि लगि रगर
संभु न त रहऊँ कुँआरी॥

इस कठोर तपस्या के कारण इनका शरीर एकदम काला पड़ गया। इनकी तपस्या से प्रसन्न और संतुष्ट होकर जब भगवान शिव ने इनके शरीर को गंगाजी के पवित्र जल से मलकर धोया तब वह विद्युत प्रभा के समान अत्यंत कांतिमान-गौर हो उठा। तभी से इनका नाम महागौरी पड़ा।माँ महागौरी का ध्यान, स्मरण, पूजन-आराधना भक्तों के लिए सर्वविध कल्याणकारी है। हमें सदैव इनका ध्यान करना चाहिए। इनकी कृपा से अलौकिक सिद्धियों की प्राप्ति होती है। मन को अनन्य भाव से एकनिष्ठ कर मनुष्य को सदैव इनके ही पादारविन्दों का ध्यान करना चाहिए।महागौरी भक्तों का कष्ट अवश्य ही दूर करती हैं। इनकी उपासना से आर्तजनों के असंभव कार्य भी संभव हो जाते हैं। अतः इनके चरणों की शरण पाने के लिए हमें सर्वविध प्रयत्न करना चाहिए।पुराणों में माँ महागौरी की महिमा का प्रचुर आख्यान किया गया है। ये मनुष्य की वृत्तियों को सत्‌ की ओर प्रेरित करके असत्‌ का विनाश करती हैं। हमें प्रपत्तिभाव से सदैव इनका शरणागत बनना चाहिए।

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ गौरी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:

अर्थ : हे माँ! सर्वत्र विराजमान और माँ गौरी के रूप में प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है। हे माँ, मुझे सुख-समृद्धि प्रदान करो।-----------------------------------पंकज तिवारी"सहज"