Thursday, April 2, 2009

नवरात्री पर विशेष

-----:माँ दुर्गा के है नौ रूप:-----


नवरात्री में दो शब्द है -"नव" और "रात्रि" । "नव" शब्द संख्या वाचक है और "रात्रि"का अर्थ है -रात,समूह का काल विशेष । इस नवरात्री शब्द में संख्या और काल का मिश्रण है। विशेष रूप से दो नवरात्री प्रचलित है ,पहला नवरात्री चैत्र मास की शुक्ल पक्ष प्रतिपदा से और दूसरा नवरात्री क्वार मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से आरंभ होता है । प्राचीन समय में कुलचार नवरात्र मनाये जाते थे ,परन्तु अब दो नवरात्र ही प्रचलित रह गए है .शक्ति उपासना के लिए नवरात्री सर्वाधिक उपयुक्त मन जाता है । नवरात्री शक्ति पूजा का समय है। शक्ति ही वास्तव में किसी भी वास्तु के स्वरुप को स्थिर करने में समर्थ है। बिना शक्ति के कोई भी वास्तु क्षण भर भी हो नही सकती। हर व्यक्ति को यदि अपने स्वरूप की रक्षा करनी है ,उसे शक्ति संपादन अवश्य ही करना चाहिए । इसमे कोई संदेह नही कि सब के मूल शक्ति की अंशभूत एक-एक अलग शक्ति काम करती रह्ती है,इसलिए हम किसी शक्ति की उपेक्षा नही कर सकते । इस विषय में में कवि रहीमदास जी कहते है कि-------------रहिमन देखि बडन को लघु न दीजिए डारि जहा काम आवै सूई कहा करै तरवारी


शक्ति का स्वरुप वर्णन नही हो सकता ,वह सबके भीतर कार्य करती है । शक्ति वस्तु के भीतर रहने वाला वह धर्म है ,जिससे स्वरुप का लाभ प्राप्त करती है तथा स्वरुप कीरक्षा करती है । शास्त्रों में इसको बड़े ही उत्तम ढंग से समझाया गया है कि इस शक्ति का शक्तिमान के साथ तादात्मय सम्बन्ध है। इसका अर्थ है कि जो पदार्थ किसी अन्य पदार्थ से अलग भी लगता हो और अलग नही भी हो तब उसका उस पदार्थ के साथ तादात्म्य सम्बन्ध मन जाता है । इसका एक अच्छा उदहारण है जैसे :------दीपक और उसका प्रकाश । प्रकाश दीपक से अलग भी है और नही भी है । यह दो बाते अलग इसलिए है कि दीपक को प्रकाश और प्रकाश को दीपक न तो कहा जा सकता है और न ही समझा जा सकता है । कारण यदि दीपक कि लौ पर हम अपना हाथ रख दे तो जल जाएगा ,परन्तु प्रकाश में एसी कोई बात नही है । अतः सिद्ध होता है कि ये दोनों अलग है परन्तु यदि दीपक को हटा दे तो प्रकाश अपने आप हट जाएगा ,तब इसे अलग नही समझा जा सकता है । इसी तरह से सभी पदार्थो में शक्ति है । "तस्य सर्वस्य या शक्तिः "जिसका अर्थ है कि शक्ति और वास्तविक शक्ति ,जिसकी हम प्रार्थना करते है । वह सबकी है ,किसी एक कि नही है .प्रत्येक में उसका अंश है । इसलिए दुर्गा सप्तसती में भी शक्ति का निवास एक व्यक्ति या एक स्थान पर नही कहा गया है । योगनिद्रा में कहा गया है कि :------नेत्रस्य्मासिक बहुद्येभ्य्स्थोरासह ।


निर्गम्य दर्शाने तस्यो ब्रम्ह्नोस्व्यक्त्जन्य्मयाह । ।


अर्थ:---इसका अर्थ यह है कि शक्ति नेत्र ,मुख,नासिका,ह्रदय,और छाती से निकल कर दृष्टिगोचर हुई। शक्ति कही भी केवल एक ही स्थान पर नही रह्ती । वह अलग- अलग स्थानों पर विभाजित होकर सुशुप्त रह्ती है ,परन्तु सबका सहयोग होने पर कार्य कराने लगती है ।


नवरात्री के नौ दिनों में भगवती दुर्गा कि अलग-अलग तीन शक्तियों कि तीन नामो से कि जाती है प्रथम तीन दिन लक्ष्मी ,दुसरे तीन दिन सरस्वती और अन्तिम तीन दिन कलि रूप कि आराधना कि जाती है । इसीलिए दुर्गा सप्तसती में तीन बार "नमस्तस्ये " का यही अभिप्राय है कि भक्त तीनो शक्तियों को प्रणाम कर रहा है । कुछ उपासक महाकाली के १० भुजाओ वाली संहारक शक्ति कि पूजा करते है ,कुछ १८ भुजाओ वाली महालक्ष्मी के रूप में प्रतिपालक शक्ति कि पूजा करते है और कुछ ८ भुजाओ वाली महासरस्वती के रूप में उद्बोधक शक्ति के रूप में पूजा करते है। दुर्गा सप्तसती के तीनो भागो कि ये देविया अधिष्ठात्री शक्ति मणि गयी है। विस्तार से समझने हेतु भगवती दुर्गा के नौ रूपों में प्रथम शैलपुत्री ,द्वितीय ब्रम्ह्चारिणी ,तृतीय चंद्रघंटा ,चतुर्थ कुष्मांडा ,पंचम स्कंदमाता,छठा कात्यायिनी,सप्तम कालरात्रि ,अष्टम महागौरी .नवं सिद्धिदात्री है । नवदुर्गा कि प्रतिरूप नौ शक्तिया है। करके,उसे ,हम,वैष्णवी,वाराही,नारसिंही,इंद्री,शची और चामुंडा । यदि मानव माँ भगवती को सच्चे अर्थो में प्रसन्न करना चाहता है तो समस्त बुराइयों का बलिदान करके उसे माँ को प्रसन्न करना चाहिए। जिस प्रकार सौम्य रूप में शंकर ,शिव के नाम से तथा भयंकर रूप में रुद्र के नाम से प्रसिद्द है उसी प्रकार से देवी अपने सौम्य रूप में भगवती गौरी के रूप में तथा भयंकर रूप में माँ दुर्गा काली या चंडी के नाम से विख्यात है । सभी को शुभ शक्ति प्राप्त हो ऐसी हमारी माँ भगवती से सदैव प्रार्थना है:--------या देवी सर्व भूतेश शक्तिरूपेण संस्थिता ।

नमस्तस्ये नमस्तस्ये नमस्तस्ये नमो नमः ।।

------: पंकज तिवारी सहज :------






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