Saturday, June 27, 2009

आत्मा को झकझोरती --------- एक कृति

समीक्षक:---- संतोष तिवारी (मुंबई)


वृक्षों
के लतिकाओं मे के सनसनाहट को झेलते झुरुमुटो में छिपे रहस्यों को चपलता के साथ रंगओ में उलझा कर सब के समक्ष प्रस्तुत करने का दम्भ भरने वाला यह युवा चित्रकार ,कवि के गूढ़ रहस्यो तथा सामाजिक बेदनाओ से दूर नही रह सका। यह अपना छोटा सा संसार इसी प्राकृतिक छटाओं में ढूढ़ता फिरता है तथा प्रकृति के गूढ़ रहस्यों को उजागर करने के बाद ही संतुष्टि की साँस लेता है। उपर्युक्त चित्र में कलाकार ,समाज को दर्द युक्त नारी के रूप मे जिया है ,जिस पर गीदरो की क्रूर निगाहे उन्मुक्त भावनावो से टूट पड़ने में पीछे नही रहना चाहती। क्या वाकई लाल चोंगा पहने दागियों से ऊब चुकी है हमारी पृथ्वी?नारियो की सबसे अमूल्य धरोहर कही जाने वाली इज्जत सामाजिक परिदृश्य में भी काफी हद तक सच साबित होती है लेकिन क्या सुरक्षित है ? क्या हम बचा पाने में सक्षम है समाज की इज्जत जिसका की वो हकदार है। इन्ही गूढ़ रहस्यो में उलझा ,अचंभित कर देने वाला सच सब के सामने प्रसतुत करके उसके ह्रदय को उधेलित कराने का यह वीणा उठाया है नगर के ही
युवा चित्रकार तथा कवि पंकज त्रिपाठी 'सहज' ने तमाम पुरस्कार प्राप्त 15 वर्ष की अवस्था में (2004) ही पूर्व प्रधानमंत्री माननीय अटल विहारी वाजपई द्वारा काव्य क्षेत्र में प्रसस्ति पत्र भी प्राप्त कर चुका है। इसके तीन कृतियों का चयन राज्य ललित कला अकादमी लखनऊ में भी किया जा चुका है। पंकज आजमगढ़ ,गाजीपुर ,वाराणसी आदि क्षेत्रो में सामूहिक तथा एकल प्रदर्शनिया भी लगा चुका है। महात्मा गाँधी काशी विद्यापीठ के तृतीय परिसर शक्तिनगर से बी.ऍफ़ .ऐ । चतुर्थ वर्ष के इस छात्र के कबिताओ का प्रसारण आकाशवाणी वाराणसी तथा ओबरा से समय-समय पर होता रहता है।
पंकज तिवारी "सहज"