Thursday, April 23, 2009

विकास के मुद्दे पर दें मत

विकास के मुद्दे पर दें मत इस बार चुनाव में देशवासियों को विकास के मुद्दे पर ही विचार कर वोट डालने के लिए प्रेरित किया जा रहा है। लोगों को जात-पात और धर्म से ऊपर उठकर राष्ट्र और उसके विकास के बारे में विचारशील होने के लिए प्रेरित किया जा रहा है। इसके लिए प्रिंट व इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का सराहनीय योगदान है। आज भी पश्चिम बंगाल व उड़ीसा में एक तबका गरीबी रेखा के ऊपर नहीं उठ सका है। पश्चिम बंगाल के पुरुलिया जिले में खेतिहर मजदूर संगीनों के साये में खेती करते है। उड़ीसा में नालकों की खानों पर माओवादियों व छत्तीसगढ़ में राजनेताओं और पुलिस पर हमले करना सरकार के प्रति आक्रोश दर्शाता है। देश की भ्रष्ट व कुव्यवस्था के कारण कुछ लोग आतंक का रास्ता अपनाने को मजबूर है। इसलिए आजादी के 60 साल बाद ही सही मीडिया के सहयोग से आम आदमी विकास के मुद्दे पर वोट करेगा तो राजनीतिक दलों को भी विकास की भाषा समझ में आने लगेगी और आम आदमी का उत्थान होगा। वी.के. शर्मा, पीतमपुरा, नई दिल्ली धर्म की राजनीति देश को स्वतंत्र हुए साठ साल से अधिक का वक्त हो गया लेकिन विडंबना है कि इतने बड़े लोकतंत्र में आज भी धर्म की राजनीति की जा रही है। उत्तेजित एवं भड़काऊ भाषण देकर जनता को गुमराह किया जाता है। जनता बाद में झूठे जनप्रतिनिधियों का असली चेहरा समझ पाती है। भारत एक धर्म निरपेक्ष देश है, जहां सभी धर्मो के लोग भाईचारे के साथ रहते हैं। स्वार्थी जनप्रतिनिधि वोटों की खातिर धार्मिक उन्माद फैला कर राजनीति की अंगीठी पर वोटों की रोटियां सेकते हैं। सभी राजनेता मूल मुद्दों से भटक जाते हैं। पिछले बीस साल से मंदिर-मस्जिद, हिंदू-मुस्लिम की राजनीति हो रही है, लेकिन विकास, रोजगार और सुरक्षा के मुद्दे गौण होते जा रहे हैं। यदि सभी अशिक्षित लोग शिक्षित हो जाएं तो सांप्रदायिक राजनीति अपने आप खत्म हो जाएगी। राजनीति में युवाओं को आगे आना चाहिए तभी देश उन्नति करेगा । अजय गुप्ता, दिल्ली चुनाव आयोग की सीमा चुनाव आयोग को देख कर लगता है कि उसकी हालत नख, दंत विहीन शेर जैसी है। जो दहाड़ तो सकता है लेकिन नेताओं पर कोई कठोर कार्रवाई नहीं कर सकता है। इसी बात का फायदा उठाकर तो सभी दल के नेता मनमानी करने पर उतारू हैं। चुनाव के अभी तक के हाल पर नजर डालें तो प्रतिदिन कोई न कोई नेता अनर्गल बयान दे रहे है। व्यक्तिगत लांछन से लेकर वोट की खातिर नेता इतने विवादस्पद बयान दे रहे हैं कि लगता नहीं है कि आचार संहिता भी है। आयोग के पास शिकायतों का अंबार है। शिकायत करने वाले भी किसी न किसी दल के हैं और खुद इस कृत्य में शामिल हैं। आयोग भी अपनी साम‌र्थ्य के अनुसार कार्रवाई करके किसी तरह चुनावी यज्ञ पूरा कर देना चाहता है। अब सवाल उठता है कि चुनाव आयोग द्वारा नेताओं पर कोई ठोस कार्रवाई करने के लिए क्या कभी कोई ठोस कानून बनेगा। एक बात तो साफ लग रही है कि चुनाव आयोग नेताओं पर कोई कार्रवाई करेगा सिर्फ दहाड़ने वाला शेर रहेगा। युधिष्ठिर लाल कक्कड़, गुड़गांव राजनाथ का दृष्टिकोण लोकसभा चुनाव को लेकर सभी दल एक-दूसरे पर कटाक्ष करते नजर आ रहे हैं। सोनिया गांधी ने लालकृष्ण आडवाणी की आलोचना करते हुए कहा कि वे राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के निर्देश पर चलते हैं। उन्हें शायद यह अंदाजा नहीं होगा कि इस बयान से आडवाणी और भाजपा की सहर्ष स्वीकार्यता में कई गुना वृद्धि होगी। संघ की अनुशासन और सामाजिक समरसता का अनुपालन बहुत लोग करना चाहते है। कांग्रेस में तत्वनिष्ठा नाम की कोई चीज है ही नहीं वह पूरी तरह व्यक्ति निष्ठ है। इस आरोप से भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने कहा था कि भाजपा ने संघ से मार्गदर्शन न कभी लिया और न लेगा। उन्हें संघ के प्रति अपने दृष्टिकोण को स्पष्ट करके समाज में व्याप्त भ्रम को दूर कर अपने वक्तव्य का खंडन करना होगा। डा. बलराम मिश्र, गाजियाबाद जाति-पाति से ऊपर उठे चुनावी हलचल समुद्र की लहरों की तरह बढ़ती ही जा रही हैं। आज का चुनाव वास्तव में पूरी तरह जातिवाद पर आधारित चुनाव लग रहा है। मुस्लिम बहुल इलाके से उसी जाति विशेष को टिकट दिया जाता है और जाट बहुल इलाके से उसी जाति के व्यक्ति को टिकट दिया जाता है। जनता भी स्वजाति प्रेम के कारण समझ नहीं पाती कि कौन दागी है या कोई उम्मीदवार सही है। जनता को चाहिए कि जाति पाति की भावना से ऊपर उठकर सुयोग्य उम्मीदवार को वोट दे। संजीव वर्मा, दिल्ली गिरेबान में झांकें टीवी के माध्यम से एक प्रतिष्ठित चैनल के द्वारा प्रसारित प्रोग्राम कौन बनेगा प्रधानमंत्री प्रोग्राम को बंद कर देना चाहिए। चंद लोग ऐसे प्रोग्राम को पूर्व नियोजित कर ऐसे निष्पक्ष प्रोग्राम को सफल होने से पहले ही निष्कर्ष कर वाह-वाही लूटते हैं। अगर देखा जाए तो हम नोट के बदले वोट की जगह इस्तेमाल होकर देश की बागडोर ऐसे स्वार्थी तत्वों के हाथों में दे देते हैं जो सपेरे की तरह बीन बजा कर हमें नचाते हैं और हम नाचते रहते हैं। इसलिए हमें अपने गिरेबान में झांकना होगा --------------पंकज तिवारी "सहज"

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