Thursday, July 16, 2009

गरीब जनता के धन का दुरपयोग

हमारे उत्तर प्रदेश की तुलना देश के सबसे पिछडे राज्यों में की जाती है क्योकि यहाँ पर संसाधनों का अभाव है। यहाँ पर रोजगार के उतने अवसर उपलब्ध नही जितने की अन्य राज्यों में है ,हमारे प्रदेश की जनता हमेशा अभाव में ही जीती है.हमारे प्रदेश की कोई भी सरकार इस तरफ़ ध्यान नही देती सिर्फ़-सिर्फ़ हमेशा वोट इ राजनीती करती है जनता को क्या परेशानी हो रही है,जनता को क्या चाहिए इससे उसका लेना देना नही रहता वो हमेशा वोट के चक्कर में परेशान रहती है उसका जनता से कोई लेना देना नही रहता इन्ही सब कारणों से हमारे प्रदेश में कोई कल कारखाना नही लग पाता रोजगार के लिए यहाँ के लोग अन्य प्रदेशो में जाते है और जलालत झेलते है...............................................................................................................................................................................

इसके वावजूद प्रदेश के विकास कार्यो पर धन खर्च करनेके वावजूद कोई भी मुख्यमंत्री जीवित रहते अपने पुतलो को स्थापित करने के लिए जनता की गाढ़ी कमाई को फिजूलखर्ची में बर्बाद करे तो इसे कौन सी मानसिकता कही जाए ?यह सवाल निश्चित रूप से प्रदेश की जनता की जेहन में उठ रहा होगा १२५८ करोड़ जनता का धन खर्च कर जगह जगह जीवित रहते ही अपने स्वयं के पुतले लगवाए इसे क्या कहेंगे ?मामला जनहित इ याचिका के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट पंहुचा इस प्रकरण में कोर्ट के हस्तक्षेप की आशंका होते ही न केवल पूर्ण बने बल्कि अपूर्ण प्रतिमाओ का भी अनावरण कर डाला और उन्होंने पुतलो का समर्थन करते हुए सामाजिक उत्थान का तर्क दिया है । यह कैसा सामाजिक उत्थान है ?इस सामाजिक उत्थान से कितनो को रोजी रोटी मिली और कितनो का पेट भर रहा है एसे सामाजिक उत्थान का क्या औचित्य ?.......................................................................................................................

हमारे उत्तर प्रदेश में मानव विकास सूचकांक व साक्षरता का ग्राफ सबसे कम है । करीब ६ करोड़ लोग आज भी गरीवी रेखा के निचे जीवन यापन कर रहे है । स्वास्थ्य सुबिधाओ का ग्रामीण क्षेत्रो में भयंकर अभाव है । शिशु मृत्यु ददर अधिक है एसे पुतलो से कौन सा जनता का उद्धार होने वाला है। क्या दिन हिन् ,गरीबो की भूख इन पुतलो को देखने से मिट जायेगी ,अगर पुतलो को देखकर भूख मिटती तो क्या बात है ये तो आश्चर्य हो जाता। जबकि भूख का अर्थशास्त्र कुछ अलग है भूख केवल अमीरों को ही नही ,गरीबो को भी लगती है,और भूखे पेट अनाज मागते है न की पुतला ,और भूख मिटाने के लिए गरीब किसी भी कार्य को करने से नही कतराता ,वह मेहनत से धनार्जन कर अपने और अपने परिजनों की भूख मिटाने के लिए दो जून की रोटी जुटाना चाहते है। लेकिन हमारी माननीय मुख्यमंत्री ने तर्क दिया है की पुतलो के निर्माण में जुटे लोगो ओ रोजगार मिला है,यह कितना हास्यापद तर्क है इससे कितने दिनों तक रोजगार उपलब्ध होगा । जिस राज्य में ६०००००००(६ करोड़ ) लोग गरीबी रेखा के निचे जीवन यापन कर रहे हो उनमे से केवल १००० लोगो को एसा अल्पकालीन रोजगार मिले तो क्या उन ६ करोड़ लोगो की भूख मिट जायेगी एसा तो नही हो सकता न एक कमाए १००० खाए ..................................

किसी भी प्रदेश की सरकार का प्रथम दायित्व होता है की वह अपने प्रदेश की जनता के हाथो को काम दे ,उन्हें दो जून की रोटी का जुगाड़ करे ,अच्छा आशियाना न दे सके तो कम से कम उनको एक छत मुहैया कराये ,स्वास्थ्य सुविधाए उपलब्ध कराये ,सभी को शिक्षा के अवसर उपलब्ध कराकर साक्षर बनाने की दिशा में योजनाये बनाये । लेकिन मायावती ने इन सभी मूलभूत आवश्यकताओ को किनारे रख कर अपने पुतलो को खड़ा करने पर करोडो खर्च कर दिए ,जोकि काफी शर्मनाक बात है । दलितों की मसीहा का तगमा लटकाकर कुर्सी के लिए सोसल इंजीनियरिंग का फार्मूला सामने कर चुनाव लड़ने की रणनीति बनाई ,कहा गया दलितोद्धार ?अपने पुतलो को लगवाने का इतना शौक वह भी जनता के धन से ,इस धन से अगर गरीबी मिटाने ,मूलभूत सुबिधाये मुहैया कराने एवं शिक्षा मुहैया कराने के लिए करती तो उत्तर प्रदेश की जनता उन्हें लाख-लाख धन्यवाद एवं साधुवाद देती । प्रदेश की करोडो जनता भूखे पेट सोने को मजबूर है और मायावती गरीव जनता का निवाला छिनकर अपने महिमामंडन के लिए करोडो कर्च कर रही है । एक ओर दलितों,गरीबो को उन्हें अपना हक़ दिलाने की बात करती है ,और दूसरी ओर उन्ही का शोषण -----------------------------------------------------------------------जितना पैसा इस पर खर्च हुआ उतने पैसे से पाता नही कितनो को रोजगार मिल गया होता । प्रदेश का कितना विकास होता हमारा प्रदेश भी दुसरे प्रदेशो से टक्कर लेता लेकिन हमारे प्रदेश का दुर्भाग्य है किउसको यह नसीब नही है उसको गरीबी में ही निर्वहन करना पड़ेगा -----------------------------------------------------------------------------------------------------पंकज तिवारी "सहज "