Thursday, April 23, 2009

अमृत की बूँद

अमृत की बूंद मनुष्य जब जन्म लेता है तो उसी समय से अमृत की एक बूंद पाने के लिए इस संपूर्ण संसार रूपी सागर में गोते लगाने लगता है, क्योंकि यह बूंद शाश्वत एवं अनश्वर है। इस नश्वर संसार में जो आनंद प्राप्ति का लक्ष्य है वह उन्हीं धुंधले बादलों के समान है जो अपनी छाया के माध्यम से भव को प्रकाशित करने वाले भाष्कर को ढक लेते हैं। सूर्य अपने स्थान पर है, किंतु भौतिकता के बादल उन्हें ढक लेते हैं। मनुष्य भी अज्ञानता रूपी बादलों के बीच खोया है। वह संसार के भोग में निरत होकर दिशाविहीन हो जाता है। इसी मोह रूपी संसार में अनिश्चित लक्ष्य के लिए इधर-उधर दौड़ने लगता है, लेकिन जीवन निरर्थक (अर्थहीन) हो जाता है। इस पर विज्ञान ने अपनी प्रगति के माध्यम से भूत, भविष्य और वर्तमान (त्रिकालज्ञ) बनने की चेष्टा की है तथा कुछ ऐसे भी कार्य संपन्न किए हैं जो प्रकृति के विपरीत हैं। हम प्रकृति से विपरीत दिशा में बढ़ते हुए अपने आपको प्रगति की दिशा में रखे हैं। यह सांसारिक ज्ञान उस मार्गदर्शक के समान है जो हमें वास्तविकता में अपनी दिशा की ओर खींचकर दिशाहीन कर देता है। ऐसे में हमारे पास जीने के लिए मात्र लौकिक साधन ही बचते हैं और व्यक्ति उस अमृतरूपी बूंद की तलाश में अपने सारे उद्यम करता है और इसी आशा में हमेशा ही तल्लीन होकर पुरुषार्थ करता है। यह जीवन तब तक अज्ञानता और आडंबर की चादर है, जब तक उसे ज्ञान रूपी अमृत की बूंद नहीं मिलती है। आनंदरूपी अमृत की एक बूंद के बिना कल्पित पंचकोश (अन्नमय, प्राणमय, ज्ञानमय, विज्ञानमय, आनंदमय) तथा पंचजन्य (गंधर्व, देव, पितर, राक्षस, असुर) सभी शून्य हैं। बिना आनंद के हमारी सभी योजनाएं समस्त कार्य व्यवहार अतीव दुर्गम हैं। ईश्वर की शक्ति उसी आनंद से है। यह आनंद की अमृतमयी एक बूंद उस महासागर के समान है जिस समुद्र में यह जीव रूपी मछली उस रस का पान करती है। इस बूंद का पान करना उस गूंगे व्यक्ति के समान है जो अनेक व्यंजनों का भोग करके भी उस स्वाद के बारे में नहीं बता सकता। इस अमृत बूंद के बिना जीवन निष्प्राण है। इसे प्राप्त करने के लिए ज्ञानी जन अनेक स्थानों में खोज करने के बाद अपनी आत्मा में खोजता है और उसे पाकर आत्मसंतोष, आत्मनिधि के साथ प्राप्त होता है। -------- पंकज कुमार तिवारी   

No comments: